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(१२) सप्तसप्ताह करतलसहशो भूत् सुस्थिता मेदनीयं विकसितशतपत्राश्चोद्गता रश्मिमन्तः । अमरशतसहसा ओनमी चोधिमंडे । इमु प्रथम निमित्तं सिंहनादे हि दृष्टं ॥ बोधिज्ञान प्राप्त होने पर महात्मा बुद्धदेव सात सप्ताह तक बोधिद्रुम के आस पास भिन्न भिन्न स्थानों में एक एक सप्ताह तक विचरते रहे । पहले सप्ताह में तो वे बोधिद्रुम के नीचे उसी स्थान पर रहे जहाँ उनको बोधिज्ञान लाभ हुआ था, और वहाँ वैठकर वे द्वादश निदान 8 के प्रतीत्य समुत्पाद-तत्व का विचार करते रहे । ललितविस्तर का मत है कि इस सप्ताह में उन्होंने प्रीत्याहारव्यूह नामक समाधि का अनुष्ठान किया। दूसरे सप्ताह में वे बोधि पयं क

  • द्वादश निदान ये है:-अविदा, संस्कार, पिज्ञान, नामरूप,

पड़ायतन, स्पर्श, वेदना, तृष्णा, उपादान, भव, जाति, जरादिडःस, स्कंध । यथा--अयिसामत्ययाः, संस्काराः संस्काप्प्रत्ययं पिज्ञान, विज्ञानप्रत्ययं नामरूप, नामरूपपुत्ययं पायानं, पड़ायतनपत्ययः स्पर्शः, स्पर्गप्रत्यया धेदना, वेदनापुस्यया तृष्णा, तृष्णापत्ययमुपादानं, सुपादाम्पत्ययो भवो, भयपत्ययानातिनातियत्यया रानरसशोक परिवेददुखदौर्ननस्योपापाया सम्भवन्त्येय फेवणस्य महतो दुसस्कंधस्य समुदयो भपति समुदयः। . ललितविस्तर का मत है कि महात्मा बुद्धदेव दूसरे सप्ताह में चंक्रमण कहते रहे और तीसरे सप्ताह में वे अनिमेप होकर बोधिमंड का . निरीक्षण करते बैठे रहे। क्या- 'भभिसंयुद्ध योपिस्तथागतः मयमे सप्ताह