यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

AAAAAAAAAAAAAAAAAA M ANARit! वीजक मूल * । तासु नाम मन माना ॥ कहहिं कवीर हमहिं पै । वारे । ई सब खलक सयाना । शब्द ॥ ४६॥ बुझ २ पंडित पद निर्वान । सांझ परे कहवाँ। बसे भान ।। ऊँच नीच पर्वत देला न ईट । विनु । गायन तहवाँ उठे गीत ॥ श्रोस न प्यास मंदिर । नहिं जहवाँ । सहसों धेनु दुहावें तहवाँ ॥ नित्तै । अमावस नित संक्रांती । नित नित नवग्रह वैठे। पांती ॥ मैं तोहि पूछौं पंडित जना । हृदया ग्रहन । लागु केहि खना ॥ कहहिं कवीर इतनो नहिं जान ।। कौन शब्द गुरु लागा कान ॥ ४६॥ शब्द ।। ५०॥ बुझ बुझ पंडित बिरवा न होय । आधे बसे पुरुष आधे बसे जोय॥ विरवा एक सकल संसारा । स्वर्ग । शीश जर गई पतारा ॥ बारह पखुरिया चौबीस पात । घने वरोह लागे चहुँ पास ॥ फूले न फले ।