यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

1५६ बीजक मूल * ढोटा एक नारी ।। न्यारो न्यारो भोजन चाहे ।। पाँचो अधिक सवादी ।। कोई काहुका हटा न माने । आपुहि श्राप मुरादी ॥ दुर्मति के दोहागिन मेटे ।। टोटेहि चाँप चपरे । कहहिं कबीर सोइ जन मेरा जो घर की रारि निवरे ॥३॥ ॥शब्द ॥ ४ ॥

  • सन्तो देखत जग बौराना ॥

साँच कहो तो मारन धावे । झूठे जग पति- याना । नेमी देखा धर्मी देखा । मात करे अस्ना- ना॥ प्रातम मारि पपाणहिं पूजे । उनमें किछ । न ज्ञाना ।। बहुतक देखा पीर पोलिया । पढ़े कि तेव कुराना । के मुरीद ततवीर वतावें । उनमें उहै । जो ज्ञाना ॥ श्रासन मारि डिंभ धरि बैठे । मनमें बहुत गुमाना । पीतर पाथर पूजन लागे । तीरथ ! गर्भ भुलाना ।। माला पहिरे टोपी पहिरे । छाप तिलक अनुमाना ॥ साखी शब्दै गावत भूले । प्रातम खबरि न जाना ॥ हिन्दू कहें मोहिं राम ! Arm •rmirth