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  • बीजक मूल * . ३१

पदि समुझावै । अपने मरण की खबरि न पावै ॥ जाने जीव को परा देसा । झूठहिं प्राय के कहा संदेसा ॥ संगति छाड़ि करै असरारा । उवहे मोट नर्क कर भारा॥ साखी-गुरु द्रोही ना मन्मुखी । नारी पुरुष विचार । ते नर चौरासो भरमि हैं । ज्यों लों चन्द्र दिवाकार ॥४३॥ रमैनी ॥ ४४ ॥ कबहूँ न भयउ संग औ साथा । ऐसेहिं जन्म गमायउ हाथा ॥ बहुरि न पैहो ऐसो थाना । साधु : संगति तुम नहिं पहिचाना । अब तो होइ नर्क महँ वासा | निस दिन बसेउ लबार के पासा ॥ साखी-जात मवन कहँ देखिया । कहहिं कबीर पुकार । चेतना होय तो चेतिले, ( नहिं तो )दिवस परतु है धारा॥४४॥ __ रमैनी ॥४५॥ हिरणाकुश रावण गौ कंसा । कृष्ण गये सुर । नर मुनि वंशा ॥ ब्रह्मा गये मर्म नहिं जाना । बड़। सब गये में रहल सयाना ॥ समुझि न परलि राम .