यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

बीजक मूल २१ . मानुष बुद्धि सपनेहु नहिं पाया ॥ चौतिस अक्षर से निकले जोई। पाप पुण्य जानेगा सोई॥ साखी-सोई कहता सोइ होडगे, निकरि न बाहिर पार । • हो हजूर ठगढ़ कहतहो, (तैक्यों) धोखे जन्म गमाव ॥२४॥ ॥ रमैनी ॥ २५ ॥ ३ चौतिस अक्षरका इहै विशेपा । सहस्रों नाम यहि । . में देखा ॥ भूलि भटकि नर फिर घट आया । होत अजान सो सब न गमाया ॥ खोजहिं ब्रह्मा विष्णु । शिव शक्ती । अनंत लोक खोजहिं बहु भक्ती॥ खोजहिं गणगंधर्व मुनि देवा । अनंत लोक खोज- हिं बहु मेवा ।। सासी-जती सती सप खोजहिं, मनहिं न माने हारि। बड बड जीवन वांचिहे, कहहिं कवीर पुकारि ॥ २५ ॥ ____॥ रमैनी ॥ २६ ॥ ___ आपुहि कर्ता भये कुलाला । बहु विधि वासन गढ़े कुम्हारा॥विधिने सवै कीन्ह एक ठाऊँ । अनेक जतन के वने कनाऊँ । जठर अग्नि मों दीन्ह 1040