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  • वीजक मूल * १६E

जन्म मरण वालापन । चौथेवृद्ध अवस्था श्राय ।। जसमूसाको तके विलाई।असयमजीवघातलगाय३४०॥ है विगरायल वोरका । विगरो नाहि विगारो ॥ घावकाहिपर घालो । मितदेखों तितप्राणहमाये३४१ पारस परसे कंचन भी। पारस कधी न होय ॥ पारस के अरस परसते । सुर्वण कहावे सोय ३४२ ढूँढन ढूँढत दूढिया । भया सो गुना गून ॥ ढूँढन ढूँढन ना मिलो । तवहारी कहा वेचून ३४३ ॥ वैचून जग चूनिया । साई नूर निन्यार ॥ अाखिर ताके बखत में । किसका करो दीदार ४४ सोई नूर दिल पाक है । सोई नूर पहिचान ।। 'जाके किए जग हुवा । सों वेचून क्यों जान ३४५ ब्रह्मा पूछे जननि से । रजोरि शीस नवाय ॥ कौनवर्ण वह पुरुष है । माताकहु समुझाय ३४६ ॥ ३ रेप रूप वै है नहीं । अधर धरी नहिं देहु ॥ गगन मंडल के मध्य में । निरखो पुरुर विदेह ३११ धरे ध्यान गगनके माहिं । लाये वज्र किवार ॥ TRY