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  • बीजक मूल * १६७

सवते लघुता ई भली । लघुता से सब होय ॥ जस दुतिया को चन्द्रमा । शीस नवे सब कोय ३२३ । मरते मरते जग मुवा । मुये न जाना कोय ॥ ऐसा होयके ना मुवा । बहुरि न मरना होय ३२४ मरते मरते जग मुवा । बहुरि न किया विचार ॥ एक सयानी आपनी । परवस मुवा संसार ॥३२५ शब्द है गाहक नहीं । वस्तु है महँगे मोल ॥ बिना दाम काम न आवे । फिरे सो डामा डोल ३२६ ॥ गृह तजिके योगी भये । योगी के गृह नाहि ॥ विन विवेक भटकत फिरे । पकरिशब्द की चाहिं ३२८ सिंह अकेला बन स्मै । पलक पकल करै दौर ॥ जैसा बन है अापना । वैसा वनहै और ॥३२८॥ 1 पैगहै घट भीतरे । बैठा है साचेत ॥ । जब जैसी गति चाहे । तब तैसी मति देत ३२६ । बोलतही पहिचानिये । साहु चौरका घाट अंतर घटकी करनी । निकरे मुखकी वाट ३३०॥ 'दिलकामहरमकोईनमिलिया । जोमिलियासोगर्जी ॥ MAHAARAAtARKARIA