TRAKAmreeke RAMPARAMERA - १६६ वीजक मूल कहहिं कवीर चुम्बक विना । क्यों जीते संग्राम ३१४ ॥ अपनी कहै मेरी सुने । सुनि मिलि एकै होय । हमरे देखत जगजात है । ऐसा मिला न कोय ३१५. देश विदेशे हों फिरा । गांव गांव की खोरि ॥॥ ऐसा जियरा ना मिला । लेवे फटक पछोरि ॥३१॥ मैं चितवत हों तोहिको । तू चितवत कछु और ॥ लानत ऐसे चित्तपर । एक चित्त दुइ और ॥३१७॥ चुम्बक लोहे प्रीति है। लोहे लेत उठाय ! ऐसा शब्द कबीर का । काल से लेत छुड़ाय ३१८१ भूला तो भूला । बहुरि के चेतना ॥ विसमय की छूरी । संशय का रेतना ॥३१६। 1 दोहरा कथि कहै कबीर । प्रति दिन समय जो देखि ॥। मुये गये नहीं बाहुरे । बहुरि न पाये फेरि ३२० गुरु विचारा क्या करे । शिष्यहि माहे चूक ।।। भावे त्यों पस्बोधिये । वांस वजाये फूक ॥३२॥ 1 दादा भाई वापके लेखो । चरणन होइहों बंदा । अबकी पुरिया जो निरुवारे । सोजन सदाअनंदा ।। MAM
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