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- बीजक मल १६५. श्रागिजोलागि समुद्र में। टूटि टूटि खसे झोल ॥ रोवे कबीरा डम्फिया । मोर हीरा जर अमोल ३०६ छौ दर्शनमें जो परवाना। तासु नाम वनवारी ।। कहहिकवीरसव खलकसयाना। इन्हमेंहमहिंअनारी३०७ सांचे श्राप न लागे । सांचे काल न खाय ।। सांचहि सांचा जो चले । ताको काह नसाय ३०८ पूरा साहेन सेइये । सब विधि पूरा होय ॥ श्रोछेसे नेह लगाय के । मुलहु अावे खोय॥३०ा ! जाह वैद घर अापने । यहां बात न पूछे कोय ॥ जिन्ह यह भारलदाइया । निखाहेगा सोय ॥३१॥ भोरन के सिखलावते । मोहडे परि गो रेत ॥ स विरानी राखते । खाइनि घरका खेत ॥३॥ में चितवत होतोहि को । तू विवत है बाहि ।। कहहिं कबीर कैसे बनिहें । मोहि तोहिं या वाहिए। तिकन तावत तकि रहे । सके न दम्य पार॥ मनार खाली पग | लाकमानविन नसक्यनी तम कानी । जल व वहान