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1.१७४ वीजक मूल राउर के पिछवारे । गावे चारिउ सेन ॥ जीव परा बहु लूट में । ना कछुलेन न देन।।१२६॥ चोगाड़ा के देखते । व्याधा भागा जाय ॥ अचरज एक देखो हो संतो। मूवा कालहि खाय १२७ । तीन लोक चोरी भई । सबका सखस लीन्ह ॥ विना मृडका चोरवा । परा न काहू चीन्ह ॥१२८॥ चकी चलती देखिके । नैनन भाया रोय ।। . दुइ पाट भीतर प्रायके । साबुत गया न कोय १२६ चार चोर चोरी चले। पगु पनहीं उतार ॥ चारिउ दर थूनी हनी । पंडित करहु विचार १३० ॥ बलिहारी वहि दूधकी । जामें निकरे घीव ॥ प्राधी साखि कवीरकी | चारि वेदका जीव १३१॥ बलिहारी तेहि पुरुपकी । परचित परखनिहार । साईं दीन्ही खाँडकी । खारी बुझे गँवार ॥१३२॥ विपके विवे धर किया । रहा सर्प लपटाय ॥ ताते जियरहिं डरभया । जागत रैन विहाय ॥१३शा जो ई घर है सर्पका ।.सो घर साधुन होय ।