यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

www वीजक मूल १४६ अथ चाचर लिख्यते । चाचर ॥१॥ खेलति माया मोहनी। जिन्ह जेर कियो संसार। कटि केहरि गजगामिनी । संशय कियो शृंगार ॥ रचेउ रंगते चूनरी । कोई सुंदरि पहिरै आय ॥ शोभा अदबुद रूप वाकी । महिमा वरनिन जाय॥ चन्द्रवदनि मृगलोचनी माया। बुंदका दियो उघार ॥ जती सती सब मोहिया । गज गति ऐसी जाकी चाल ॥ नारद को मुख मांडिके । लीन्हों। बसन छोड़ाय ॥ गर्भ गहेली गर्भ ते । उल्टी चली मुसकाय ॥ शिवसन ब्रह्मा दौरिके। दूनों पकरो। धाय ॥ फगुवा लीन्ह छुड़ाय के । वहुरि दियो। छिटकाय । अनहद धुनि वाजा बजै ।श्रवन सुनत, भौ चाव ॥ खेलन हारा खेलि है । जैसी वाकी दाव ।। अज्ञान दाल आगेदियो । टरि टरे न पाँव ।। खेलनहारा खेलिहै । बहुरि न वाकी दाव ॥. सुन । नर मुनि श्री देवता । गोरख दत्त और व्यास ॥