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  • बीजक मूल* १४१ ॥

मुवलि पिता के संगे। सरा रचि मुवल संघाती गे| आपुहि मुवलि और ले मुक्ली । लोग कुटम संग। साथी गे॥जौलौं स्वास रहे घट भीतर तौलौं कुशल परी हैं गे ॥ कहहिं कबीर जब स्वास निकर गौ।। मंदिर अनल जरी है गे ॥ ११ ॥ कहरा ॥ १२॥ ई माया रघुनाथ की बौरी । खेलन चली अ.. | हेरा हो ॥ चतुर चिकनियां चुनि चुनि मारे । कोई । न राखेंउ न्यारा हो ॥ मौनी वीर दिगंबर मोरे । ध्यान धरते योगी हो । जंगलों के जंगम मारे ।। माया किनहुँ न भोगी हो ।। वेद पढ़ते वेदुवा मारे।। पूजा करते स्वामी हो ॥ अर्थ विचारत पंडिन मारे। बांधउ सकल लगामी हो ॥ सिंगी ऋषि बन भीतर मारे । शिर ब्रह्मा का फोरीहो ॥ नाथ मचिंदर चले पीठि दे । सिंघल हू में वोरी हो ॥ साकट के घर करता धरता । हीर भक्तन चेरी हो ॥ कहहि । कबीर सुनो हो संता।ज्यों आवे त्यों फेरी हो॥१२