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AnkuAKHARAT

  • वीजक मूल * १३७

की फूटी । तिन्ह काहे सब छाँड़े हो ॥ ई संसार । असार को धंधा । अन्त काल कोइ नाहीं हो।' 1 उपजत विनसत वार न लागे।ज्यों बादर की छांहीं। हो । नाता गोता कुल कुटुंब सब । इन्हकर कौन बड़ाई हो ॥ कहहिं कबीर एक राम भजे विनु । बूड़ी। सब चतुराई हो ॥ ५ ॥ कहरा ॥६॥ 1 राम नाम विन राम नाम विनु । मिथ्या जन्म गमायो हो ॥ सेमर सेई सुवा ज्यों जहँडे । ऊन परे । पछिताई हो। जैसे मदपी गाँठि अर्थ दे । घरहकी अकिल गमाई हो ॥ स्वादे वोद्र भरे धौ कैसे ।। ओसै प्यास न जाई हो ॥ दर्वहीन जैसे पुरुषारथ 1 मनही माँहिं तबाई हो ॥ गांठी रतन मर्म नहिं । जाने । पारख लीन्हा छोरी हो ॥ कहहिं कवीर यह ौसर बीते । रतन न मिले वहोरी हो ॥६॥ • कहरा ॥७॥ रहहु सँभारे 'राम विचारे ] कहता हौं जो