यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

+Rittery ३.१३० बीजक मूल घरमा यज्ञ प्रतिग्रह अानें ॥ जेहि सिरजा तिहि नहिं , पहिचाने । कर्म धर्म ‘मति बैठ वखाने ।। ग्रहन । अमावस और दुईजा। शांति पांति प्रयोजन पूजा प्रेत कनक मुख अंतर बासा । आहुति सत्य होम । की भासा ।। कुल उत्तम जग मांहि कहावै । फिर मध्यम कर्म करावे ।। सुत दारा मिलि जूठो खाई। हरिभक्ता की छुति लगाई || कर्म अशौच उछिष्टा । साई । मतिभ्रष्ट यमलोक सिधाई ॥ नहाय खोरि । उत्तम द्वै आये । विष्णुभक्त देखे दुख पाये। स्वास्थ । लागि रहे बेकाजा। नाम लेत पावक जिमि डाजा रामकृष्ण की छोडिनि भासा । पाद गुनि भये । कृतमके दासा ।। कर्म पढ़े नौ कर्मको धावै । जहि । पूछा तेहि कर्म दृढ़ावै॥ निःकर्मी की निंदा कीजै ।। कर्म करें ताही चित दीजै। भक्ति भगवंतकी हृदया। लावें । हिरणांकुंशको पंथ चलावें ॥ देखहु सुमति । केर परकासा । विन अभ्यंतर भये कृतमके दासा ॥ जाके पूजे पाप न जुड़े। नाम-स्मरणी भवमा बूड़े ।।