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११२६ वीजक मूल * हिदि फिरि आवै । जो गढ़ गढ़े गढ़ेया सो पावै अत्रा, निग्रह से करु. नेहू । करु निरुवार छाँड संदेहू। नहिं देखे नहिं भाजिया। परम सयानपयेहू। जहाँ न देखि तहाँ पापु भजाऊ । जहाँ नहीं तहाँ । तन मन लाऊ ॥ जहाँ नहीं तहाँ सब कुछ जानी जहाँ है तहाँ ले पहिचानी॥ १० ॥ टटा विकट बाट २. मन माहीं । खोलि कपाट महल मों जाहीं ।। रही। लटापटि जुटि तेहि माहीं । होहि अटल तब कतहुँ । न जाहीं ॥ ११ ॥ ठठा गैर दूरि ठग नियरे। नितके, निठुर कीन्ह मन घेरे॥ जे ठग ठगे सब लोग। सयाना । सो ठग चीन्हि और पहिचाना ॥ १२ ॥ डडा डर उपजे डर होई । डरही में डरराखु समोई ॥ 'जो डर डरे डरहि फिरि आवै । डरही में फिर डरहि । - समावै ॥ १३ ॥ ढढा हीडतही कित जान । हीडत ढूँढ़त जाई प्रान ॥ कोटि सुमेर दि फिरि श्रावै ।। जेहि ढूँढ़ा सो कतहुँ न पावै ॥ १४ ॥ गणा दुई। बसाये गाँऊ । रेणा ढूढ़े तेरी नाँऊ ॥ मूये एक जाय । tantantraTYPotatretry