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  • बीजक मूल

दृग महिमंडल रच्यो है। रुम शाम विच डिल्ली ॥ तेहि ऊपर कछु अजब तमाशा । मारो है यम किल्ली ॥ सकल अवतार जाके महि मंडल । अनंत खड़ा कर जोरे । अदवुद अगम औगाह रच्यो है। ई सब शोभा तेरे ॥ सकल कवीरा बोले बीरा । अजह हो । हुशियारा । कहहिं कबीर गुरु सिकली पण । हर दम करहिं पुकारा ।। शब्द ॥ ८७॥ कविरा तेरो वन कंदला में । मानु अहेराखेले। वफुवारी अानंद मृगा। रुचि रुचि सर मेलै ॥ चेतत रावल पावन खेडा । सहजै मूल बांधे ।। ध्यान धनुप ज्ञान बाण | जोगेश्वर साधे ॥ .पट चक्र वेधि कमलवेधि । जाय उजियारी कीन्हा ॥ काम क्रोध ३ लोभ मोह । हांकि सावज दीन्हा ।। गगन मध्ये रोकिन द्वारा । जहां दिवस नहिं राती दास कबीरा! जाय पहुँचे । विछुरे संग रु साथी ॥ ८७ ॥ Hit.