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MARATime...ekanatanka १०२ वीजक मूल रामानंद रामरस माते । कहहिं कवीर हम कहि । कहि थाके ॥ ७७ ॥ • शब्द ।। ७८॥ अब हम जानिया हो हरिवाजी को खेल ॥ डंक बजाय देखाय तमासा । बहुरि लेत सकेल ॥ हरि बाजी सुरनर मुनि जहँडे । माया-चाटक लाया॥ घरमें डारि सकल भरमाया। हृदया ज्ञान न पाया वाजी झूठ वाजीगर साँचा । साधुनकी मति ऐसी॥ कहहिं कवीर जिन जैसी समुझी । ताकी गति भइ तेसी ।। ७८ ॥ शब्द ॥ ७९ ॥ कहहु अमर कासो लागा । चेतनहारा चेत सुभागा ॥ अंमर मध्ये दीसे तारा । एक चेता एक चेतवन हारा ॥ जो खोजो सो उहवाँ । नाहीं । सोतो याहि अमर पद मांहीं ॥ कहहिं । कवीर पद बूझे सोई । मुख हृदया जाके एक होई ।। rrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrtime