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सर्वसाधारण के बोलचाल की नागरी भाषा के पद्यों में सार तत्त्व (निज स्वरूप, आत्मधन) का परिचय कराने वाला यह बीजक ग्ररन्थ ही सर्वप्रथम है जैसे-"बीजक बतावै वित्त को, जो वित गुप्ता होय!" प्रात्मघन अत्यन्त सन्निकट (अपना स्वरूप)होते हुए मशान मौर अपच के कारण गुप्त हो गया है,उसे लखाने में यह अन्य शिला-लेख । के समान है मतएव जिज्ञासुमों को यह पन्य पारसी सन्ती द्वाग अवश्य पढ़ना चाहिये, अन्यथा सार शन्द बिना जीना धृक है। है सद्गुरु कबीर साहेय का परिचय कराना मानो सूर्य को दीपक से . देखाना है। आप तत्ववेत्ता, सर्व मत मतान्तरों के मर्मश, सदाचार और शान्ति के स्थापन कर्ता थे। परम सन्त और स्पष्ट वक्ता फवीर साहेब के अगाध शान और गुणों की प्रशसा परिमित शन्दों में मुझ जैसे मल्पश से कदापि नहीं हो सकती। ३. आपने अपना सारा जीवन सनातन मानव धर्म के प्रचार और देशोपकार में लगाया है और मापने हिन्द मुसलमान और भनेक संप्रदायों के पारस्परिक विरोध मिटाने के निमित्त उपदेश करने में , विधान्त परिश्रम किया है जैसे- 'माडरे दुइ जगदीश कहाँ ते । माया, फट्ठ कवने बौराया[देखिये शन्द:०] इस चीजक मन्य का प्रत्येक शब्द और पद एकता, राष्ट्रीयता, आत्मीयता के भावों से भरा है जैसे-"हिन्दू तुरुफ की एक राह है,सद्गुरु सोइ लरबराई" "हिन्दू ई तुरुक कहां ते माया,फिन यह राह चलाई। तया 'भूठेगर्य भुलोमति कोई,हि तुरुक भूल फुल दोई और "कहहिं फवीर राम रमि रहियो हिन्दू तुरुक न कोई केवल जाति से कोई बड़ा नहीं हो सकता, बरन् रण, के अनुसार बड़ा हो सकता है जैसे-"म प्रगट है एकै दूधा,काको कहिये ब्राह्मण शूद्रा "एक बूंद से सृष्टि रची है, कोई * धामण को शुदा" अछूतोद्धार पर जैसे-एकै पाट सफल धैठाये, जूति लेतं धोडाफोग आपने हिन्दू और मुसलमान दोनों की त्रुटियों </section><footer data-mw-proofreadpage-wrapper="">

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