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रमैनी। (४१) काहूके बहुतपय काहूके मूडनहीं ( छिन्नमस्ताको ध्यान लिखे है कि, हाथमें मुँडलीने है गलेमें लोइ चलै है सो मुहेमें परैहै ताकी पीये है )। और नानाभांतिकी जो है कर्म-प्रतिपादिका बाणी अर्थात अद्भुत रूपनकाहै ध्यान तिनमें यहिरीति के देवतनकी उपासना करैहै औनाना नातिकीकहे नाना तरह की है। उपासना बर्णन जिनमें ऐसी उनकी वाणीसुनके तिन तिन देवनपर जीवनकी प्रीति उपजतभई । औ रमैनीठानी जो कह्यो सो अपने अपने उपास्य देव तनकी रमनी कहै कथा सो ब्रह्मादिकन की वाणीको आशयलेके बनाये लेते भये ॥ ३ ॥ गुणीजहै सगुण उपासनावाले तेजीवको स्वस्वरूप दासरूपता | खोजनलगे औअनगुणी जेहैं निर्गुणवाले ते जावको अनुमान जो ब्रह्मत्वरूपता खोजनलगे सो वा वेदतात्पर्यार्थ दुइमें कोई नहीं पाये अर्थात् बहुतेरेजनेवहुतबिचारकियो परंतु न चीन्हपायो ॥ ३ ॥ ४ ॥ जोचीन्है तेहिनिर्मलअंगा । अनचीन्हेनलभयेपतंगा ६ जे यह धोखाको जानैहैं कि यह धोखाहे तिनहीं को जानिये कि इनके पारखैहै । यहबात बिनाजाने जगत्के जेनीव ते जैसे दीपकमें पतंग जरिजायहै ऐसे वह धोखामेपारकै नाना दुःखपावें । औ जोकोई साहबको चीन्हैहै जाको नेतिनेति वेदकहैहैं औ पारिख करैहैं ताके निर्मलअंग द्वैजाय है अर्थात् हंसरूप पावै है । काहेते कि वह साहब तो निर्गुण सगुण मनबचनके परे है। सोजब वाको चीन्ह्यौ तब वाहू मनबचनके पर है जायौ ॥ ५ ॥ साखी॥चीन्हि चीन्हि कह, गावहू वाणीपरी न चीन्ह ॥ आदिअंत उत्पत्तिप्रलय,सवआपुहिकहिदीन्ह ॥६॥ चीन्ही चीन्ही तुमकहा गावहुहै। अर्थात् कहाकहीही वहबाणीतो तुमको चीन्हि नहीं परी काहेते बाणी आपही कहतनाय है कि जाकी उत्पत्तिहोयहै। ताकी प्रलयभी होय है; जाकी आदि होयहै ताको अंतहू होयहै, तातेजेते पदार्थ जगदमें बाणी आदिदैकै ते मन बचनके परे नहीं हैं । औ जोचीन्हैहै। ताको निर्मल अंग होयजायेहै । यहजो कह्यो ताते यहदेखाय दियो कि जब