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(३८) बीजक कबीरदास । मात्र है अर्थात् संमुझेते धोखहींहै कुछ वस्तु नहीं है सो एक विना रामनामके जाने कहे साहबको जो बतावैहै रामनाम सो अर्थ बिनजाने मायाको बताया जा है राम नाममें संसार औ ब्रह्माको अर्थ तौने भव कहे भयरूप समुद्र तौनेमें संसार बुडि मुवा इहां लक्षणा है संसार बूड़ि मुवाकहे संसारी जीव बूड़ि मुये ॥ १३ ॥ इतिदूजीरमैनीसमाप्तम् । अथ तीसरी रमैनी।। चौपाई। प्रथम अरंभ कौनके भाऊ। दूसर प्रकट कीन सोठाऊ ॥१॥ प्रकटेब्रह्म विष्णु शिव शक्तीप्रथमैभक्ति कीन जिव उक्ती॥२॥ प्रकटेपवन पानी औ छाया।बहुबिस्तारकै प्रकटी माया ३॥ प्रकटे अंड पिंड ब्रह्मडापृथिवी प्रकटकोन नवखंडा॥४॥ प्रकटे सिध साधक संन्यासी । ये सब लागिरहे अविनासीद प्रकटे सुरनर मुनिसबझारी। तेऊ खोजि परे सवहारी॥६॥ साखी ॥ जीउ सीउ सब प्रकटे, वे ठाकुर सव दास ॥ कविर और जानैनहीं, एक रामनामकी आस॥७॥ प्रथम अरंभ कौनके भाऊ। दूसर प्रकटकीनसोठाऊ॥ १॥ प्रकटेब्रह्मविष्णुशिवशक्ती। प्रथमैभक्तिकीनजिवउक्ती ॥२॥ । प्रथमअरंभ कौनके भाऊकहे भयो औ दूसर कौन प्रकटकियो जाते ये सब व्यवहारहैं १ प्रथम अनुमान समष्टिजीवकियो मनके अनुभव ते ब्रह्म भयो औ बाणीभई ताते ब्रह्मा विष्णु महेशादिक देवता प्रकटभये उनकी सब