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| बीजक कबीरदास । साखी ।। बाप पूतकी एकैनारी, औ एकै माय बिआय ॥ ऐसा पूत सपूत न देखों, जोबापचीन्हेंधाय ॥६॥ बापता धोखाब्रह्महै जाते शुद्धनीवअशुद्ध&उत्पन्नभयेही ते अशुद्ध जीव पूर्ती सो दोऊमाया सवलत भये ताते बाप पूतकीएकै नारी भई । औ पूर्व जगत् कारण रूपा जो माया है तैौनहात(अहंब्रह्मास्मि)मान्य है औ तनेहींते व्यष्टि जीवनकी उत्पत्तिहूभई है यात दोहुनक एकै महतारा है।याते एकै माया बियानी है। सो ऐसा पूत सपूत नहीं देखेहु है कौनसा बाप जे ब्रह्म ताको धायकै कहे बहुत बुद्धि दौरायकै चीन्हैं कि, यह धोखा है। अब जाकी शक्ति करिकै यह जगत् भयॉहै। जौनी भांतिते सो समेटि के सिंहावलोकन कैकै पुनि कहैं ॥ ६ ॥ इति प्रयम रमैनी समाप्तम् । अथदूसरीरमैनी ॥२॥१॥ चौपाई। अंतर ज्योति शब्द यक नारीहरि ब्रह्मा ताके त्रिपुरारी॥१॥ तेतिरियेमगलिंगअनंता । तेउनजानैआदिउअंता ॥२॥ बाखरीएकविधातैकीन्हा । चौदहठहरपाटिसोलीन्हा॥ ३॥ हरिहरब्रह्ममहंतोनाऊ । तेपुनितीनिवसावलगाऊ ॥ ४॥ तेपुनिरचिनिडब्रह्मेडा । छादर्शनछानवेपखंडा ॥ ॥ पेटहिकाहुनवेदपढ़ाया। सुलतिकरायतुरुकनहिंआया॥६॥ नारीमोचित गर्भप्रसूती । स्वागधरे बहुतैकरतूती ॥ ७ ॥ तहियाहमतुमएकैलोहू । एकैप्राणवियायलमोहू ॥ ८॥ एकैजनी जनासंसारा । कौनज्ञानते भयोनिनारा ॥ ९ ॥ | भावालकभगद्वारेआया। भगभोगतेपुरुषकहाया ॥१०॥