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(४) बीजककी अनुक्रमणिका । | विषय. | पृष्ठ. | विषय. | पृष्ठ. कबहुँ न भये संग औसाथा १२१ ] नारी एक संसारै आई १६५ इरिणाकुश रावण गौ कंसा १२३ | चलीजात देखी एकनारी १६६ विनसे नाग गरुड गलिजाई १२५ | तहिया गुप्त थूलनहि काया १६८ अराासंध शिशुपाल संहारा १२६ | तेहि साहब के लागहु साथा १७० मानिक पुरहि कबीर बसेरी १२७ | माया मोह कठिन संसारा १७३ दरकी बात कह दर्वेशा १२८ | एके काळ सकल संसारा १७४ कहते मोहि भयल युगचारी १२९ | मानुष जन्म चुके जगमांझी १७६ नाकर नाम अकहुआ भाई १३० | बढ़वत बाढ़ि घटावत छोटी १७८ भेहिकारण शिव अजहूं वियोगी १३३ | बहुतक साहस करिजिय अपना १७९ महादेव मुनि अंत न पाया १३४ | देव चारित्र सुनै रे भाई १८० मर गये ब्रह्मा काशीके वासी १३५ | | सुखक वृक्ष एक जगत उपाया १८१ गये राम औ गये लक्षमना १३७ | क्षत्री करे क्षत्रिया धर्मा १८३ दिन दिन जरे जर के पाऊ १३९] जो जिय अपिन दुखहि संभार १८४ कुतिया सूत्र लोक एक अहई १४० इति रमैनी । तै सुत मानु हमारी सेवा १४२ अढत चढावत भड़हर फोरी १४३ | अथ शब्द ।। छाडहु पति छाडहु लवराई १४५ | सन्तो भक्ति सतोगुरु आनी १८७ धर्म कथा जो कहते रहई १४६ | सन्तो जागत निन्द न कीजै १९० जो तोहि कर्ता वर्ण विचारा १४८ | सन्तो घरमें झगरा भारी १९४ गाना वर्णरूप एक किन्हा १५० | सन्तो देखत जग बौराना १९६ काया कंचन यतन कराया १५१ | सते: अजरज एक भौ भाई २०० अपने गुणको औगुण कहहु १५२ | सन्तो अचरज एक भौ भारी २०२ सौई हीतु बन्धु मोहि भावै १५५ | सन्त कहों तो को पतियाई २०४ देहहलाये भाक्त न होइ १५६ | सन्तो आवे जाय सो माया २०५ तेहि वियोग ते भये अनाथा १५७ | सन्तो बोले ते जग मारे २१३ ऐसा योग न देखा भाई १५९ | सन्तो राह दुनों हम दीठा २१५ बालना कासो बोलिये भाई १६१ | सन्तो पड़े निपुण कसाई २१७ सौग बधावा समकरि माना १६३ | सन्तो मते मातु जन रंगी २१९