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बघेलवैशवर्णन। ( ७३१) अस विचारि नरनाथहिं पाहीं । कह्यो सुघर इनही सुख माहीं ॥ इन्हे खास कलमी रघुनाथी । दै राखिये निकट कर साथी ।। सुनि विश्वनाथ हियेकी जानी । राख्यो अपने ढिग सुखमानी ॥ ग्रंथ अनूपम अमित बनायो । सादुर तासों मुदित लिखायो । तेहि सुत युगलदास मम नामा । विश्वनाथ नृप ढिग अभिरामा । रह्यो बालते जे किय ग्रंथा । लिख्यो अहै जिनमें हरिपंथा ॥ दोहा-महाराज रघुराजके, अब निवसों नित पास ॥ तास हुकुम लहि ग्रंथ यह,विरच्यों सहित हुलास॥९॥ चुपचरित्र यह ग्रंथको, कियो नाम अभिराम ।। बाँचि सुकवि सज्जन सुमति, लहैं सदा सुखधाम॥२३॥ ग्रंथ रामरसिकावली, रच्यो जो नृप रघुराज ॥ तहँ कबीर इतिहास में, यहै ग्रंथ हैं भ्राज ॥ ९४ ॥ इति सिद्धिश्रीमहाराजाधिराजश्रीमहाराजा बहादुर श्रीकृष्णचन्द्र कृपापात्राधिकारी श्रीरघुराजसिंहजूदेवकृते श्रीरामरसिकावल्या ग्रंथान्तर्गत श्रीयुगलदासकृत वघेलवे गवर्णन नाम आगम निर्देश ग्रंथसमाप्तः || .!