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बघेलवंशवर्णन । (७२९) जोहत भाग है जात सभाग सभागतस सब सोचविछोहत॥ छोहत तापै सबै जगहै गहजो रघुराजपगे अजसोद्दत ॥ ६ ॥ घनाक्षरी।। शारद शशीस कोई शारद पयोदहीसा हीसो गुनि कहै कोई लस्यो सम पारद ॥ पारदरशाति नहिं कहि कहि काहु मति मति कहे कोई घनसारहुकी पारद ॥ भार दरशात पेन्हे भूप मोती हीरा हार हार गई द्युति भाषै कविवृंद मारद् ॥ नारदकोहुते है बेहद रघुराज जस जस मही तस स्वर्ग गावती है शारद ॥१॥ दोहा-अष्टक कष्ट करै न जग, जगत पार धन नष्ट ॥ | नष्ट नहीं चित पुष्ट कवि, कवित तुष्टकर अष्ट॥ ८७ ॥ सवैया-भूप अजीत२भयो लियो जीत रिपून नहीं कोउबांचो॥ तासु तनय नृप जयसिंह जयसिंह होत भयो रणरंगमें राचो॥ तासुत श्रीविश्वनाथ भयो विश्वनाथहू दान कृपानमें सांचौ॥ तासुत जो रघुराज समै रघुराज भो तौन अचंभव सांचौ॥१॥ | कवित्त । जाहि जपि पतितहू पावन परम होत होहिंगे भये हैं गये केते हरिधामको ॥ जाको यश गावत न पावत सुकवि पार सबको अधार जो देवैया मन कामको ॥ जाके बल शंकर विरंचि सनकादि ऋषि जागत रहत जग यामिनि त्रियामको ॥ चिरंजीव होवे महाराज रघुराज सदा याचे युगलेश वेश सोई राम नामको ॥ १ ॥ अंगनि सुबिकोटि वारिने अनंग जासु कालका विहाल करै शोर धनु घोरको ॥ मार्तड पावको प्रताप जासु ताप करै शशिहूको शीतल करैत यश ठोरको ॥ चारत अशेष जासु शेषहु न अशेष ढहै नाम कहै पामर पुनीत होत जोरको । चिरंजीव होवैमहाराजरघुराज सदा याचै युगलेश सोई कोशल किशोरको ॥ २ ॥ जोलोंराम निज नाम धाम गुण ग्राम राखौ कीबो काल कर्महु प्रपंच पेच भाषिये ॥ जौलौं विधि आदि सिधि देवनको अधिकार नित प्रीतिको विचार कीबे अबलाखिये॥