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बघेलवंशवर्णन। , (७२७) सबके अधर्म नाश करि सबको धर्ममें प्रवृत्त करै हैं यह अनुभया भेद रूपकालंकार ध्वनित भयो अरु, तोजग नै रव सोहत चारु. कहे जगमें तिहारो जों है नै कहे नीति ताको जो रव कहे शोरकि रघुराजसिंह बड़े नीतिमान् सो चारु कहे सुंदर सोहतहै अरु रुचा तहँ सो वरनै जगतो, तहाँ कहे तौने जगमें सो नीतिको रव सबको रुचाँहै कहे सबको नीक लँगै है अर्थात् नीतिको बखान जो कोई करत सुनै है सो तहैं खड़े रहिजाईहै अरु वरनै गजतो कहे सोऊ जन गलत कहे गर्जनाको करत अर्थात् बड़ो शोर करत सर्वत्र वर्णन करै हैं कि रघुराजसिंह बड़े नीतिमान् ॥ ताते आपके नीतिके सुनिबेते सबको उत्कंठा अतिशयरूप वस्तु व्याजत भयो इससे जैसी आपकी नीतिहै तैसी आपहीकी नीतिहै यह अनन्वयालंकार ध्वनित भयो ताते आपकी राज्यम अनीति नहीं है। यह वस्तु सूचित भयो अरु गत वर्णन कैर है ताते इनके बरोबर ऐसा नीतिवारो पृथ्वीमें कोई नहीं है याते निःशंक * यह हेतु व्यंजित भयो ताते, रघुराज भनै नाहिं लोग गलोहि. कहे या भांतिके जे तुम रघुराजसिंह हौ तिनको जो कोई लोंग गलोहि कहे गळते अरु हियते नहीं भनै हैं कहे नहीं भजन करै हैं अर्थात् तुम्हारे नामको मुखते उच्चारण करत जाको गल नहीं चढ़े हैं। अरु जो तुम्हारे नामको हियमें नहीं धारण करै हैं ॥ नजैभनरा कहे ताको जरा कहे नेक कबहूँ नै नहीं भयो, अर्थात् वह सबसो हारिही गयो है अरु घुरतोकहे धुरिजातहै अर्थात् वह नाश वैजाइहै यहाँ प्रस्तुत कार प्रस्तुत प्रगट प्रस्तुत अंकुर नाम यह प्रमाण करिकै प्रथम प्रस्तुत कहे वर्णनीय जे हैं। आप तिनते दूजे प्रस्तुत जे हैं श्रीरघुनाथजी तिनको वर्णन कवित्तके चारहूँ तुकमें विदितई है यह प्रस्तुतांकुर अलंकारते आपकी श्रीरघुनाथजीकी उपमा व्यंजित भई ॥ १ ॥ दोहा-जन्मअष्टमी आदिदै, उत्सव जै भगवान ॥ तिनमें वितरत जननको, मुद्रा पट सहसान ॥ ८६ ॥