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( ७२६) बघेलवंशवर्णन । अष्टक नृप रघुराज कृत, युगलदास सुदकंद ॥ सार्थ गतागत चंद्र ऋषि, सिंहवलोकन छंद ॥८६॥ अथगतागत सवैया।। तो यश शीशे मही सरसोय यसारस हीम शशी सजतो ॥ तोमह तेज भसो विरमाहि हिमा रवि सो भजते हमतो ॥ तो जग नैरव सोहत चारु रुचा तहँ सो वरणै गजतो ॥ तो रघुराज भजै नहिं लोग गलोहिनजै भज राघुरतो ॥१॥ | अर्थ-हेरघुराजसिंह तिहारो श्रीवृदावन अरु श्रीजगन्नाथपुरीमें सुवर्णतुलादानादि महादानरूप जो यह यशहै शीश मही कहे महीके शीशमें अथवा सब राजनके यश ते शीश कहे शिरा मंही कहे पृथ्वीमें सरसोय कहे अधिकायकै सारस हीम शशी सजतो. कहे सारस जो है कमल अरु हिम जोहै पाला अरु शशी जो है चंद्रमा ताकी सजतो कहे आपनी शोभाते साजेही कहै शोभित करै है यह प्रतीपालंकारते सारस अरु हिम अरु शशिकी शोभा सब ऋतुमें सब कालमें एकंरस नहीं रहै है कमल झरिजाय है हिम गलिजाईहै शशी क्षीण द्वैजाइँदै अरु संकलंक है अरु तिहारो यश सब कालमें एक रस रहै है अरु निःकलंक है याते उन सबनते अधिक है यह व्यतरेकालंकार व्यजित भयो, अरु तोमह तेज भसो विरमाहि. कहे तिहारो जो महातेज है सो वीर जे हैं बड़े २ राजा तिनमें भसो कहे भासितहै ताते तिहारे तेजते तेऊ शंकित रहै हैं कि हमारी राज्य न लैलें यह सुचितभयो अथवा विरमाहि कहे सब जगमें तिहारो तेज विशेषकै मैहै ताते तुम्हारे तेज करिके सब राजा निस्तेज द्वैगये यह ध्वनित भयों याहीते, हिमा रविसों भजते हमते. कहे आपने हियमें हम तो तुम्हारे तेज को रवि सों कहे सूर्यसे भलै हैं कहे भजन करै हैं अर्थात् वर्णन करै हैं। यह उपमालंकारते सूर्य कमलनको आनंद देइ अरु तम नाझ करै हैं अरु सबको सुधर्ममें प्रवृत्त करै हैं ॥ अरु आपको तेज सज्जनके हृदयकमलको आनंद देइहैं औ सब राजनके बीरताके मदको, अज्ञानको नाश करै हैं अरु