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(७२४) बघेलवंशवर्णन । दंडनीय जहँ एक निसाना । रागरागिणी भेद विधाना ॥ कोध जहां क्रोधहिं पर होई । लोभ करै यशकों सब कोई ॥ जहां अर्धमहिं कोः है त्यागा । निज तियस ठानब अनुरागा ॥ जहँ गृह चित्र करें चित चोरी । बंधन जहां पशुनको जोरी ।। वचन असत्य कहत रोजगारी । सुताव्याह गावहिं तिय गारी ॥ . चलत कुपथं जहां गज माते । कुटिल धनुष जहँदृग दरशाते ।। सुभटनके अंग जहां कठोरा । कर्कश जहँ झिल्ली गण शोरा ।। जहां निर्द्धनी यती निहारी । वारि नीचि गति जहां निहारी ॥ दोहा-कंपध्वजामें देखिये, बँधे धौरहर धौल॥ शोभा सब संसारते, वसी भूप पुर नौल॥ ८१ ॥ सोरठा-कहुँ गोविंदगढ़ माहिं, कबहूँ रीवाँ नगरमें ॥ श्रीरघुराज सोहाहिं, सब राजनके मुकुट मणि॥१॥ कवित्त घनाक्षरी। बंदी ने न ताकत मुसद्दी कामकाजी सबै बैठे दुहूंओर दर्दी दीननको दिलराज॥ कद्दी दाहवारे औ अमद्दी सरदार आगे बैठे अरिकरनं गरद्दी रणकै गराज । देवनद्दी कैसी किति दिपति विसद्दी जासु युगलेश साहिवी विहद्दी मनो देवराज॥ रद्दी कर दुर्जन अनेदी कर सज्जनको राजै राजगद्दी पर महाराज रघुराज ॥१॥ देन समै जोई जोई याचि राख्यो याचकहै सोई सोई देत सांच लगत न वारहै। भूषणअमोल गाँव वसन अमोल म्याना वाजि गज नोल मुदा कैयक हजारौ ॥ कहै युगलेश ऐसी रीति है हमेश केरी देखत न देश कोष नेकुकै विचारहै ॥ राजनके राज महाराज रघुराज ऐसो आलु तौन दूजो राजा राजत उदारहै॥२॥ पटु सब विद्यन में हटत न काहूसों है निपट निशंक बुद्धि नेकु नै हलति है ॥ चटपट जानिळेत अटपट बात सब बात कपटीनकी न केसहू चलर्तिहै ॥