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बघेलंवंशवर्णन। (७२३) मुद्रा अमित दुशालन जोरी । कोंहुँको देत हाथ युग जोरी ॥ कोहूको पट और बनाता । मुदन सहित देत हरषाता ॥ कोहुको लोइया और रजाई । देत रुपैयन युत सुखदाई ॥ रुपिया और उपरना रासी । कोहुको भूपति देत हुलासी ॥ दोहा-देत रुपैया सबनको, बचै न कोउ नर नारि ॥ सुख छावत गावत सुयश,जात अयन पगु धारि॥७६॥ भरत लषण रिपुदवन युत, सीय रामको फेरि॥ भूषण वसन अमोल है, विदा करत छवि हेरि ॥ छीतूदास सुसंतको, साधुन सेवा हैत ॥ द्वादशसै मुद्रा वसन, अमित मोद युत देत ॥ ७७ ॥ जनकपुरी मम सोपुरी,समय सो जनक प्रमोद ॥ जनक सरिस नृप जनक,चलि चलि मग चहुँ कोद७८ स०-औधपुरी मुद औधकि,किर्धी वृंदावनै दिपै मंदिर भारी जानकीरामकीझांकीकहूँकहूँराधिका माधवकीमनहारी ॥ झालंरी शंख बजै चहुँ ओर बसें जहँ संत अनंत सुखारी॥ भूप रच्यो है गोविंदगढ़ सौ अनूपम मैं निज नैन निहारी॥१॥ दोहा-छन छन छन घन ध्यान मन, तनक न तन धन भान ॥ धन धन धन जन ज्ञान पन, कन कन वनकनसान ७९॥

ध्या भा
ग्या सा

सोरठ-जेहिं गोविंद गढ़माहिं, दुखहीको दुखदेखिये ॥ डर परलोक सदाहिं,जह सब लोगन की अहै ॥२८॥