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बघेलवंशवर्णन । (७१७) होत भयो पुनि सविधि विवाहा । पूरि रह्यो काशी उत्साहा ॥ तहँ गजपति नरेशकी रानी । रूप भूप रघुराज लोभानी ॥ दोहा-कहत भई निजनाहस, सो उरभरी उछाह ॥ महाराज रघुराजको, कस नहिं कियो विवाह॥ ४७ ॥ सो कह जब तुमसा कह्यो, तब तुम मान्यो नाहि ॥ अब न सोच संबंध जेहि, पूरब होत तहाँहि ॥ ४८ ॥ चार रोज तह रही बराता । कीन्ह्यो सो सत्कार अघाता ॥ पुनि सादर जब कियो बिदाई । मुद्रा दिय ६ लाख मँगाई ॥ हय गय भूषण वसन जमाती । बड़े मोळके दिय बहु भांती ॥ पुनि सरदारन और वकीलन । मुद्रा दिय पठाय धरि पीलन ॥ नृप रघुराज फेरि सुख छाई । रुपया मोहर अमित सँगाई ।। सदर रामराजसिंह काहीं । तुला चढ़ाय गंग तट माहीं ॥ सब विप्रनको दियो देवाई । जय जय ध्वनि काशी महँ छाई ॥ राम निरंजन संत महान! । वसे बनारस विदित जहाना ॥ दोहा-सकल शास्त्रमें निपुण अरु, काभादिकते हीन ॥ | राम निरंजन सो न अब, कतहूं संत प्रवीन ॥ १९ ॥ महाराज रघुराज उदारा । तिनके दरश हेतु पगु धारा ॥ भूपहि आवत जानि दुवारा । चाल सेवक अस वचन उचारा ॥ नाथ दरशहित बहु नृप आवै । दशि दूरिते सपदि सिधावें ॥ सो आपहु दर्शन कर आवें । बैठन कहैं बैठि तो जावें ॥ सुनि बोल्यो रघुराज नरेशा । बैठब तबहिं जो होइ निदेशा ॥ अस कहि प्रभु ढिग चलि सुखधामा । वार वार किय दंड प्रणामा ॥ ६ अशीश बहु बैठन कहेऊ । बैठि यामलों नृप सुख लहेऊ ॥ कह प्रभु नृप विशुनाथ समाना । रामभक्त नहिं भयो जहाना ॥ दोहा-सब विद्यनिमें निपुण तिमि, दानी विदित महान ॥ तासु तनयतैसहि तुमहुँ, सम अबहूँ ना आन ॥२५॥