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बघेलवंशवर्णन । ( ७१३ ) दोहा-सबको करिदीन्ह्यौ बिदा, ते है रेल सवार ॥ रानी सुत सब सैन्यगे, निजपुरको विनवार ॥ २४ ॥ छरे संग सरदारले, युग रानी सुत दोय ॥ तख्तसिंह अवतभये, राँवाको मुदमोय ॥ २४ ॥ नृप रघुराज मोद उर छाई । शिविर कराया ले अगुवाई ॥ सुदिवसमें त्रय भयो विवाहा । छायो घर घर परमउछाहा ॥ जो पितृव्यकी सुता सयानी । तख्तसिंह व्याह्यो सुखमानी ॥ तख्तसिंह ल्याये सुत दोई । तिनमें जेठ कुँवर रह जोई ॥ ताको सुता आपनी व्याही । महाराज रघुराज उछाही ॥ तेहिते लहुरे कुँवरहिं काही । सुता विमातृ भागनि कहँ व्याही ॥ दायज देन जु रह्या करारा । पंचलक्ष दिय. द्रव्य उदारा ॥ | हय गज भूषण वसन अमोले । दियो तिन्हैं रघुराज अतोले ॥ दोहा-मेवा सकल मँगायकै, अरु मिठाइ बहु भांति ॥ कैयो दिन सादर दियो, ऊँच नीच सब जाति ॥ २६॥ चारि रोजकों नेमें जग, राखि मास लों बरात ॥ पूरी साज सबै जनन, पूरी सुख सरसात ॥ २७ ॥ रत्न जटित सुवरण कटक, अरु बहु मोती माल॥ निज सरदारनको दियो,छायो सुयश विशाल ॥२८॥ | कवित्त ।। एक समै बांधवेश महाराज रघुराज छरे सरदारन औ संगलै देवानहै ॥ रेलमें सवार कलकत्ताको पयान कीनो हरिहर क्षेत्र आदि तीरथ महान है ॥ परेमग तहाँकै नहान ६ दिजान दान तीने रोज जब कलकत्ता नगिचानहै ॥ हूनपति आज्ञा पाय हून मुख्य आगू आयलै गयो लेवाय डेरा देतभी मकान है॥ १॥ दोहा-डेरा आयो लाट पुनि, देखि भूपको रूप ॥ रूप न अस कोई भूपको, भूपर गन्यो अनूप ॥ २९॥ मुद्रा सहस रसोई काहीं । शिबिर जाय पठयो सुखमाहीं ॥ दूजे दिन पुनि नृपति उदारा । सादर लाट शिविर पगुधारा ॥