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ही लियो घर अली ये मोबाना । तब बघेलवंशवर्णन । ( ७०९ ) दाहा-महाराज रघुराज पुनि, दारु तुला मँगवाय॥ यक पलरामें देतभे, सुवरण मनन धराय ॥५॥ दाल कृपाण पाणि निज लैकै । निज भूषण वसनहुँ ढिग धैकै ॥ यक पलरामें सहित उछाहा । बैठ्यो बांधवेश नरनाहा ॥ सुवरण पलरा नीच लख्यो जब । दिय नरेश सुनि देश आशु तब ॥ अपनो गरू रफल्ल मँगाई । निज समीपही लिये धराई ॥ तबहूँ सो पलरा नीच लखाना । तबहुँ नृपति अस वचन वखाना ॥ ६ थैली ये मोहरन केरी । उलदि देहु न करहु अब देरी ॥ कामदार ते सुनि सहुलासा । उलदि दियो मोहर अनयासा ॥ सुवरण पळरा महि लगि गयऊ । पलरा ऊँच भूपको भयऊ ॥ तुला चढ़े अस लाख नृपकाहीं । किये प्रशंसा लोग तहांहीं ॥ उतरि तुलाते नृप हरषाई । दशहजार मुद्रा मँगवाई ॥ दीनबन्धु दीवानहु भपा । यक पल बैठाय अनूपा ॥ यक पलते रुपयन रे । दियो धराय मोद सों पूरे ॥ दोहा-भयो न ऐसो नृपति कोउ, कामदारको जोइ ॥ तुला चढ़ावै रजतमें, चंदै हेममें सोइ ॥ ६ ॥ बढ्यौ शोर सुनि जननको, तहाँ भूप शिरमौर ॥ कह्यो करै नहिं शीर कोड, कहो वचन यह मोर पाँडे नंदकिशोर कह, सो सुनि भरि मुद थोक ॥ बंद न हल्ला होत यह, छयो तीनिहुँलोक ॥ ८॥ राज राज पुनि श्रीरघुराना । मानि मोद उरमाहिं दराजा ॥ निज नामहिं सुश्लोक बनाई । सो बै सहस आशु छपवाई ॥ प्रथम पंडितनको विरताई । भोर कमक्षा सपदि सिधाई ।। काशिराजको तहां मकाना । अति आयत रह विदित जहाना ॥ तहँ मज्जन करि पूजन नीके। वोल सहस भै विप्रन जीके ॥ डै ६ मेहर दिय सबकाहीं । विविध भांति सन्मानि तहांहीं ॥