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(७०८) बघेलवंशवर्णन । माधौगढ़गे यक समय, तहते आगू लाय ॥ सुनि हवाल भै अति खुशी,सभा मध्य बँचवाय ॥ १ ॥ खत लिख पठयो लाट पुन, जहां आप मन होय ॥ चाल लीजै हकमा तहां, बड़ी बड़ाई जोय ॥ २ ॥ नृप लिखि पठयो काशिको, सोउ लिख्यो है वेश ॥ वधिवेश वर सैन्य युत, गो महेशपुर देश ॥ ३ ॥ मुलाकात दरबार जन, भयो कानपुर माहि ॥ तस भो काशी लाट दिय,कहों सी तकमा काहिं ॥४॥ छंद-भूषण सितारैहिदको दीन्ह्यो किताबी एकहै ॥ सुबहादुरी भूषण दियो यक जटित रतन अनेक ॥ अति है प्रसन्न सुशाहजादी दियो रत्ननहार है ॥ सो दियो नृप रघुराजको वर हूँनपति करि प्यार है॥ ५ ॥ किय कूच फेरि परेटते रघुराज भूप उदारहै ॥ जन यूह भये प्रसन्न अति लखि सैन्य तासु अपार ॥ चलि असी सुरसार संगमें तट वास करि सुखछायकै ॥ मणिकर्णिका अरु गंगमें सउमंग जाये नहायकै ॥ २ ॥ यक गाउँ औ गो सहस भूषण वसन नोल अमोलहै ॥ उपरोहितै दिय दान कर सम्मान प्रीति अतोलहै ॥ पुनि दरश किय विश्वेशको दिय गाएक चढ़ाइहै ॥ अरु सहस मुद्रा वसन भूषण अर्पण किय चाइहै ॥ ३ ॥ अन्नपूरणा अरु बिंदुमाधव जाय निकट गोपाल है ॥ पद पंचशत शत अपि मुद्रा लियो दरश विशाल ॥ पुनि कालभैरव ढुंढिपाणिहि र सिगरे देवको । शत शत सु मुद्रा अर्पिकै दरशन लियो करि सेवको । पुनि पंचगंगा आदि जेते घाट रहे महान ॥ | करिमज्जनै तिनमें कियो जो दान करो बखान ॥ | गुज तुरंग गोशत वसन भूषण अन्नकी बहु राशिहै ॥ लहि.वि काशि निवासि सबदिय आशिर्षसलासिहै॥ r । । ।