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(७०२) बघेलवंशवर्णन । अगरेजके सब देश लुटे हनेगो रण धायकै ॥ ढिग वैग बहु वागीन काहँ नरेश तु मँगायकै । यकमें चढ़ायो द्वारकेसहि वैश प्रीति बढ़ायकै ॥ पुनि नाथ सहित समाज है असवार बहुबागीनमें ॥ चलिदियो परम निशंक परम प्रवीन परम प्रवीनमें ॥ मिरजापुरै ढिग भूप आयो आय बागी वै तबै ॥ बहु विनय कीनी आप करहिं सहाय तौ सुधरै सबै ॥ तव नाथ ऐसा कह्यो तिनों हाथ यह यदुनाथ ॥ सच भांति मोहिं भरोसजाको जो अनाथन नार्थहै ॥ सुनि गये ते सब महाराजहुँ आय वापुर बसे । यक रच्यो नगर गोविंदगढ़ तहँ जायके कबहूँ लसे॥ अँगरेजके बागी तिलंगा बागि सिगरे देशको ॥ वश कियो को नरेश को रहे डरत कोहुँ नरेशको। मैहर विजय राघवहुके गै विगरि तिनके दावते ॥ मग रोकि गोरनको हने बहु जोर जुलुस जमावते ॥ तब आय बहु अँगरेजरीवा नगर कियो निवास ॥ महाराज श्रीरघुराज तिनको कियो परम सुपासहै ॥ डर मानिरींवा नगर को नहिं आय बागी कोउ सके। मतिवंत अति श्रीवंत गुणि सब संत नृपको सुखछके अंगरेज लखि वर तेज भाष्यो वधिबेश नरेशसों ॥ लै खर्च हमस राखि लीजै और सैनी वैशस ॥ मैहर विजय राघवहुके वागी उपद्रव करते हैं । चलि मारि तिन्हें निकारि दीजै दुरग लीजै हम कहैं। सुनि भूप तैसहि कियो सैनप दीनबंधु दिवानकै ॥ लिय घेरे मैहर प्रथम तोप लगाय आसु पयानकै ॥ भगि गये तहँके यूह योगी वैगि कार तहँ थान ॥