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बघेलवंशवर्णन । (७०१ ) | दोहा--भये अयाचक पुरी के रहे जे याचक वृंद ॥ | पाय पाय सुवरण रजत,गाय सुयश मुदकंद॥७३॥ घनाक्षरी । शतक बनायो जाय आपहि सुनाया सुनि जगदीश बहु सुभद्रा मोद भीने हैं । शिरते सुमनमाल तुरत खसाय रीझि अभिराम सादर इनाम करिदीन्हें हैं । कहै युगलेश वेश दौर बांधवेश तब सम्भृत कलेशहारी धन्य मान लीन्है हैं ॥ महाराज रघुराज भक्तिको प्रभावपुरी प्रगट देखाना जानो भक्तराज वीनेहैं । दाहा-लखि प्रभाव तेहि ठाँव यह, कहैं लोग भरिचाय ॥ भक्ति भाव रघुरवसति,कस न द्रवैं यदुराय ॥७४॥ श्रीरघुरान मोद भो नेतो । यक मुख सों कहिसकत न तेतो ॥ माने सब जन अरु सरदारा । पूर्व पुण्य कछ किया अपारा ॥ जाते वश अस नृप ढिग माहीं । हरि प्रभाव निरखे चख माहीं ॥ परदेशी अरु पुरी निवासी । अरु जे रहे भूप सँग वासी । चढ्यो रोज नृप अटकानेाई । ताते सबको भोजन होई ॥ एक गाउँ जगदीश चट्टायो । पन्डा पाय परमसुख पायो । पुरी सवाउ मास किय वासा । सबको सब विधि देत हुलासा ।। युत समाज हरिमन्दिर जाई । लिय त्रिकाल दर्शन नृपराई ।। दोहा-अर्द्धरात्रि नित जाय नृप, त्योंहीं दर्शन लेय ॥ पाय सुमहाप्रसादको, सबको सादर देय ॥ ७९ ॥ फागुनकी पूर्णिमाको, फूलडोल गोपाल ॥ झुलत निरखि निहाल है, को न तज्यो जग्गजाल॥७६॥ छंद-शुभदिवस तहते गौन करिके गया तीरथको गयो। करि श्राद्ध वेद विधान सो बहुदान विप्रनको यो । द्विज पाय धन समुदाय वांछित करत भये बखान हैं । जस गया कीन्ह्यो वाँधवेश न नरेश कीन्ह्यो आनहै ॥ तहँ सुन्यो नौकरहूनके गे बिगरि कारन पायके ॥