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hele {६९६) बघेलवंशवर्णन । देश देशके याचक आये । भये प्रसन्न हेम बहु पाये ॥ ब्रजमंडल में नर औ नारी । सब थल ऐसो परयो निहारी ॥ | दोहा-लहि लाहि अमित हिरण्यको, भाषहिं ते कहि धन्य ।। यह नवीन परजन्य नृप, वरस्यो ब्रजहि हिरन्य ॥५७॥ | कवित्त । दीन्ह हैं दिनान पंडितान हेम महादान रघुराजसिंह वृन्दा कानन मॅझारी है । सुयश महान शीत भानुसों प्रकाशमान सुकवि प्रधानमें वखान जासु भारी है । मानिन अमानद अमानिनको मानदान ज्ञानिन प्रदान ज्ञान दीन त्राणकारी है । दान सनमानमें जहानमें न आन ऐसो भानुवंशमें निशान ज्ञान ध्यान धारी है ॥ १॥ दोहा-सुदिवश व्रजते कूच कर,चलि मगमें दरकूच ॥ रीवांनगर पहूचिगो, संयुत सैन्य समूच ॥ सोरठा-उधदि वैध यक चित्र, जामें यही चरित्र सब ॥ | सोरचिचात विचित्र, लिखे देत चरचें सुकवि ॥ १ ॥ | पारसीके बैतका अर्थ-तन्- | अंगरेजीके दोहाका अर्थ-दी सरा कहे तन उसके तई पैरहन जो | कहे प्रसिद्ध अमनि प्रीजंट कहे सर्व कपरा सो भी उरियां कहे नंगा नहीं | व्यापी जो है गाड कहे ईश्वर ताकी देखताहै तात जो कपरै उसके अंग अन कहे पृथ्वी अर्थ कहे ताके ऊपर को नहीं देखताहै तो और कोई आई कहे हम पे कहे प्रार्थना करे हैं। उसके अंगको नहीं देखताहै यह। न्यारो कहे सूक्ष्म माई कहे हमार कहा कहिलेको यह काव्यापत्ति है हरट कहे चित्त ताके अन कहे अलंकार व्यंजित भयो कपरौ उसके ऊपर डीवाइन कहे दिव्य मर्थ कहें आनंद वे कहे ल्यावने को अर्थात् अंगको कैसे नहीं देखता है बुजां दर जामें दिव्य आनंद जो हैं ब्रह्मानंद तन् कहे जैसे जान जो है जीव सो । सो भेजे सिन रोय याके लिये हैं बीचनके है व तन दरकहे तनके | प्रार्थना करौह इहां सर्वव्यापी ईश्वबीच रहिहू कै जान जो है जीव सो | रको कह्यो ताते मैं ईश्वरहीके भरोसे नहीं देखता है यह उपमालंकारतें | सर्वदा रहीहौं यह मेरे मनकी जानस्वकीया नायिका व्यंजित भई ॥ | तई होयँगे यह व्यजित किया ॥