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( ६९४) बघेलवंशवर्णन । स.वैभगिनीमम ब्याहन योग्य जहां तिनव्याहन योग्यउचारी।। । होय विवाह तहां तिनको ध्रुव जानत आप सबै बड़वारी॥ रानास्वरूप सराहि कह्यो सुनिहै हमहूको खंभार या भारी ॥ सो सम्बध कियो हम ठीक हियो माँ जयपुर नाह विचारी॥१॥ घनाक्षरी।। नाम जाहि रामसिंह रूप अभिराम जोकोतिलक चढ़ाया जोधपुर नाह सुता व्याह ।। पठेवै वकील हमौ दील नहीं हैहै काज आपहूको रीवां जात जयपुर परैगो राह ॥ महाराज विश्वनाथसिंहको कुगर रघुराज सिंह बोल्यो सुनि भलो या किया सलाह। सहित उछाह कृपा करिकै अथाह अब दीजै सीख काह यहीं है उमाह मनमाह ॥ १॥ दोहा-सुनिः राना सुख पायकै, सुंदर दिवस शोधाय ॥ सीख दियो रघुराज को, दै बहु धन समुदाय ॥१५०॥ भूप स्वरूप अनूप सुनि, निज भगिनी हर्षाय ॥ विदा कियो धन अमित दै,शिविका रुचिर चढ़ाय ५१॥ संग रहे सरदार जै, औ जे बंधु अपार ॥ यथा उचित सब फौजको,कीन्ह्यो अति सत्कार ॥५२॥ महाराज विश्वनाथ किशेरा । अति प्रसन्न युत चमू अथोरा ॥ विजय मुहूरतमें सुख छाई । हरि गुरु गणपति पद शिरनाई ॥ सैन्य सहित द्रुत कियो पयाना । बाजे बहु गहगहे निसाना ॥ चलत चलत जैपुर नियन्यो । महाराज जयपुरको जान्यो । कोश भरेते है अगुवाई । डेरा दिय देवाय पुर लाई ॥ सैन्य समेत शिबिर पुनि आये । रामसिंह भूपति सुख छाये ॥ श्रीरघुराज उदार अपारा । विविध भांति कीन्ह्यो सत्कारा ॥ सो लहि जयपुरको नरनाहा । लह्यो संसैन्य मरम उत्साहा ॥ दोहा-फौज साजि पुनि मौज भरि, युत समाज रघुराज ॥ | जयपुरके महाराजगै, गमन्यो प्रभा दराज ॥५१॥