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(२१) आदिमंगल ।
है तुमहीं मनमायादिकन को बनायेंकै फैसि गयेही यह उपसंहार भयो ।
औ साखिन के आदिमें यह साखाहै । ( जहियाजन्म मुकताहता तहिया हता न कोय । छठीतिहारी हैं। जगा तू कहँचलबिगोय ) १ औ एक पोथीके अंतमें यह साखीहै । ( जासनाताआदिकाबिसरिगयोसाठौर । चौरासीकेबशपरेकहतऔरकेऔर ) १ सोयेहू“वहीबातहैऔदूसरी पोथीकेअंतमेंयहसाखाहै ॥ ( धोखे २ सबजगबीता द्वैतअंगकेसाथ । कहै कबीर पेड़ जोबिगर अबको अवैहाथ १ ) सोयहूमेवही बात है । औ अट्ठाइस साखी कौनिऊ पोथीमें और ताते दुइसाखी अंतकी लिख्या है यह उपक्रम उपसंहारभयो १ । औरप्रकरणमें यहहै कि श्रीरामचन्द्रको जब जीवनानै तबछैट सोग्रन्थभेरमेंबारबार यहीउपदेशहै । ( लखचौरासी जीव योनिमें भटक भटकि दुखपावै कहैं कबीर जोरामाहजानै सो मोहिंनीकेभावै १ राम बिननरलैह कैसा । बाटमांझ गोबरौरा जैसे २ ) इत्यादिक बहुतवाक्यहैं याते अभ्यास भयो । औ सगुण जेहें ईश्वर परमेश्वर अवतार अवतारीसब निर्गुणजेाहै ब्रह्मनौन मनबचनपरे है ताहूतेपरे नित्यसाकेतरासविहारी रामचन्द्रहैं यह अपूर्बताभई ॥ अवधू छोड़हु मन विस्तारा । सोपगहौजाहिते सद्गति पारब्रह्मतेन्यारा ॥ नहीं महादेव नहीं महम्मद हारहजरत तवनाहीं । आदम ब्रह्मनहिं तवहोते नहीं धूपनहिं छाहीं ॥ अससिहसपैगम्बर नाहीं सहसअठासीमूनी । चंद्रसूर्यतारागुण नाहीं मच्छ कच्छ नहिंदूनी ॥ वेदकिताबस्मृतिनहिंसंयम नाहिं यमनपरसाही । बागनिमाज नहींतवकलमा रामौनहींखोदाही ॥ आदिअंतसन मध्य न होते आतश पवन न पानी । लखचौरासी जीव जंतुनहिंसाखी शब्द न बानी ॥ कहहिं कबीर सुनैहै।अवधू आगेकर हुबिचारा । पूरणब्रह्म कहाते प्रकटेकिरतम किनउपचारा ॥ १ ॥ यहपद यही बीजकग्रन्थको है। सोजहां यापदहै तहांअर्थलिख्यो है सो देखिलीजियो याते अपूर्वताभई । औ रामनामहीं के जपेते श्रीरामचन्द्रहीके जानेते मनबचनके परे श्रीरामचन्द्ररूप फल की प्राप्तिहोइहै यह फल है ॥ ‘‘छच्छाआहि छत्रपति पासा । छकि किनर है छोड़िसबआसा । मैतोहींक्षणक्षणसमुझाया । खसमछोंड़िकस आपबँधाया ॥ १ ॥ रर्रारारिरहाअरुझाई । रामकहेदुखदारद जाई ॥