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(६९०) बघेलवंशवर्णन । आपसयान नुजान सुठि, को करिसकै बखान । जाँकीजै अनुमान तह, महिं प्रमाण न आन ॥३१॥ विश्वनाथ नरनाथ अरु, युवराजहु रघुराज ॥ वरनिदेशअजवेश लहि, सुकविनको शिरताज ॥३२॥ स०-चैन भरो चल्यो ऐनते वेग गयो अजवेश उदेपुरमाहीं।। राना स्वरूप अनूप जो भूप सुन्यो श्रुति आयो इते तेहि काहीं॥ सादुर बोलि सुप्रेमते क्षेमको पूँछि कह्यो ढिग बैठो इहांहीं ॥ बैठि स्वनाथको पत्रसो हाथ दियो लिय मथते धारि तहांहीं दोहा-श्रीस्वरूप राना सुघर, सुनि हवाल खत केर ॥ कह्यो सुकवि अजबेश सों,लहि प्रमोद उर ढेर ॥३३॥ लिख्यो जो सुता व्याहके हेतू । सो हम अवशि बांधि हैं नेतू ॥ पै राना जमानसिंह रे । गया करनगे जब सुख पूरे ॥ तब रीवा गवने सउछाहा । तिनको तहां होत भो व्याहा ॥ राजकुबँर रघुराज सुहायो । ताको तह ते तिलक चढ़ायो । वातिगये बहु दिवस सुजाना । इतको ते नहिं कियो पयानः ॥ सो अब ऐसी करहु उपाई । जाते हो वही सधिलाई ॥ महापात्र आपहु लिखि पाती । पठवहु द्रुत आवहिं जेहिं भाती ॥ हमहु लिखावत खत आसू । आवहिं राजकुँवर सहुलासू ॥ दोहा-काज होथ रघुराज इत, हमरहु कारज होय ॥ जहूँ की संमत देहिगे, तहँको करबै सोय ॥३४॥ महापात्र सुनि भल कहि दीन्ह्यो । नाथ विचार भलो यह कीन्ह्यो । अस कहि वेगि सुकवि अजवेशा । पत्र लिखतभो इतको वेशा ॥ रानहु इतको खत लिखवायो । बोलि पठायो सो इत आये ॥ खेत सुनि विश्वनाथ नरनाथा । सुतसों कह्यो मानि सुख गाथा ॥ रानाको यह खत सुनिलेहू । लियो सो करहु वेग युत नेहू ॥ तब रघुरानहु खत सुनि सोई । कहत भयो पितुस मुद् मोई ॥ यह हवाल मैं सब सुनि लीन्ह्यो । मोहिं बोलावनको लिखि दीन्ह्योः । .. सों जस प्रभु मोहिं देहिं रजाई । सोइ करों सोई नीक जनाई ॥