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बघेलवंशवर्णन । १६८९) जो कोउ वाचत पत्रिका, देखि पिठौता तासु ॥ वचि आशु सवसों कहत, सुनि सब लहत हुलासु१२० लिखन शक्ति लखिनाथकी, विदित लिखारी जोउ ॥ दीखन नृप अस चखन कहि, सिखन चहत सोउ२१॥ कहूं चद्वैती तुरंगकी, दरशावत सबकाहि ॥ कहूं मतंग सवार है, सुरपति सरिस सोहाहि ॥ २२ ॥ कई दुनाली धनुष ले, गोली तीर चलाय ॥ हनै निसाना रोपिकै, तुरतहि देहि गिराय ॥ २३ ॥ कहूं तेगको घालिकै, करहि टूक चौरंग ॥ सुनि लाख पितु विशुनाथ नृप,होत मनाहिं मन दंग २४॥ कहुँ वन जाय अहेरको, भारिशेर वनजीव ॥ . देखावा निज तातको, होहिं ते खुशी अतीव ॥२५॥ बहु वनराजनको हन्यो, वनहि सिंह रघुराज ॥ ते दराज विस्तर भयहि, वरण्यो नहीं समाज ॥२६॥ कवित्त । । एक समय राना श्रीजमानसिंह हिंद भान गया करिवेको कीन्ह्या देश या पयानहै ॥ जाय विश्वनाथ चित्रकूट मुलाकात कर रिवहि लेवायलाये करि सन्मानहै ॥ भाई लछिमनसिंह कन्या तिन्हैं व्याहि दीन्ह्यो चीन्ह्यो विश्वनाथै भलोभक्तभगवान तासु सुत रघुराज तिलक चढ़ायआसु जातभे हुलास भरि उदैपुर थानहैं ॥ १ ॥ दोहा-कछु दिन माहि जमानसिंह, गे वैकुंठ सिधारि ॥ रानाभो सरदारसिंह, तैउगे स्वर्ग पधारि ॥२७॥ भूपति भयो स्वरूपसिंह, तेग त्याग समरथ्य ।। राज काजमें निपुण अति,चल्यो सुनीति सुपथ्य ।।२८॥ निज भगिनिनिके व्याह हित,करि संदेह मनमाह। श्रीरघुराज सलाह कार, चलि ढिग पितु नरनाह॥२९॥ महापात्र अजवेशको, खतलिखाय यहि भांति ॥ पठयो बोग उदयपुरै, नृप सुत अति मुदमाति १३०॥