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(२०) बीजक कबीरदास ।

              अर्थ षट लिंग वर्णन ।
“उपक्रमापसंहारावभ्यासोपूर्वता फलम्: ।।अर्थवादोपपत्तिश्वलिंगंतात्पर्यनिर्णये' उपक्रमउपसंहार अभ्यास अपूर्वता फल अर्थबाद उपपत्ति इहांबस्तु तात्पर्य बर्णनमें लिंगकहे बोधकहैं ॥ उपक्रम उपसंहार को लक्षण यह है ‘प्रकरण विषे प्रतिपाद्य जोबस्तु ताका आदिअंतके बिषय है बर्णनसो उपक्रम र उपसंहार कहावै १ औ प्रकरणके बिषे प्रतिपाद्य जो है बस्तु ताको फेरि फेरिजॉहै। वर्णन सोअभ्यास कहावैहै २ औ प्रकरणकेबिषे प्रतिपाद्य जो है बस्तुसो औरै प्रमाणकरिकैवर्णनमें न आवै सोकहाँवै अपूर्बता ३ प्रकरण के बिषे प्रतिपाद्य जो है बस्तु ताकेज्ञानैकरिकै ताकी है प्राप्ति सो कहावै फल ४ औ प्रकरणमें प्रति पाचनई बस्तु ताकीजहै प्रशंसा सो कहावै अर्थबाद ५ औ प्रकरण में प्रतिपाद्य | जो है वस्तु ताकदृष्टांतकरिकै फेरिजाहै प्रतिपादन सोकहाँव उपपात्त ।। ६ ।।

इहांकबीरजीके बीजककेप्रकरणकेआदिमें औ आदिमंगल में कहाहै कि शुद्ध जीव साहबके लोकके प्रकाशमें पूर्णरहै हैं जब साहब सुरति देइहै तब जीव उत्पन्नहोयहै यह जीव शुद्ध है साहब को है मन मायाादक यामें नहीं है ये बाचहीते भय हैं । मनमायादिकको कारण यामें बने रह्येहै तातेसाहबमें नालगेसंसारमुख वैगये । जब श्रीरामचन्द्रकीप्राप्ति होई तबहीं शुद्धजीवहोइ । सा साहब हटक्यों सो नामान्यो मन माया ब्रह्म में लागिकै संसारी लै गयो। (जीवरूप यक अंतरवासा । अंतर ज्योति कीनपरकासा १ इच्छारूप नारि अवतरी । तासुनाम गायत्रीधरी ) २ येहउपक्रम वाक्यहै । औ पदन के अंतमें बिरहुलाहै ॥ ( बिषहरमंत्र न मानबिरहुली । गाडरी बोलै और बिरहुली ॥ बिषकी क्यारीबायो बिरहुली । जन्म जन्म अवतरे बिरहुली ॥ फल यक कनइल डाल बिरहुली । कहैं कबीर सचुपायबिरहुली । जो फलचाखहु मोर बिरहुली १ ) साबिरहुली में यहलिख्यो है कि तुम तौ प्रथम शुद्ध रह्यो १ सर्वज्ञ पुरुषों के लिखे जितने ग्रन्थ हैं सबमें षटुलिङ्ग अवश्य होतेहैं और यह ग्रन्थ सर्वज्ञ सत्यगुरु कबीरसाहब विरचितहै इस कारण षलिंग का स्वरूप प्रदर्शित करते हैं