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( ६८०) बघेलवंशवर्णन । ॐके रह्यो वर्ष सो बारा । खायो बोयो आम अपारा ॥ दुर्ग अटूट मानि से हारा । है सब सैना सपदि सिधारा ।। वीरभानु वरवीर नरेशा । छीनिलियो दल लै निन देशा ।। है विलायती दल निज संगा । चलो हुमायूं सहित उमंगा ॥ इत अकबर यक दिवश उचारा । सुनिये बांधवनाई उदारा ॥ भई रामसिंह सँग माहीं । बैठतही नित भोजन काहीं ॥ हमको क्यों बैठावत नाहीं । नृप कंह आप खामिदै आहीं ॥ पूँछिलेहु मातासों जाई । पूछ्यौ सो सब दियो बताई ॥ दोहा-खङ्गचर्म लै हाथमें, सुनि अकबर सो हाल ॥ चल्यो कियो तिन संगमें, वीरभानु निज बाल६८॥ अकबरसों तहँ राम कह, कोस कोस करि वास ॥ चलिये दिल्लीनगरको, जुरै फौज अनयास ॥ ६९ ॥ जुरी चमू चतुरंग संग, अमित तुरंग मतंग ॥ राँगो रामसिह जंगके, रंग अभंग उमंग ॥ ७० ॥ नातनको लिखवाय पानी । चारों नृप आये मुदमानी ॥ तिन सँग रामसिंह यशवाला । जातभयेा भो नंग विशाला ।। हन्योशेरको तहाँ हुमाऊ । दिल्ली तख्त बैठ युत चाऊ ॥ इतै सुलेमैं राम सँहारी । दिल्लीको द्रुत गयो सिधारी ॥ ताकन तनय हेतु सुखधारी । चट्यो हुमायूं ऊंचि अटारी ॥ मोद मगनसों गिरिगो नाँचै । होत भयो तुरंत वश मीचै ॥ तनय हुमायूं अकबर काहीं । बैठायो तब तख्तहिं माहीं ॥ वीरभानु जब तन्यो शरीरा । रामसिंह नृप भो मतिधीरा ॥ दोहा-दिल्लीको पुनि राम नृप, गये अकबर शाह ॥ कीन्ह्यो अति सन्मानसो, अकसमान नरनाह॥७१॥ औचक मारनको गये, ते नृप रामहि काहूँ ॥ फिरे मानि विस्मय सबै, निरखि चारु चौवाहूँ॥७२॥