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बघेलवंशवर्णन । दोहा-कछक दिवस शिरनेतनूप, सेवा कर युत प्रीति ।। ब्रह्मदेव सों समय गुणि, कह्यो विनयकी रीति ॥ ४० ॥ यक मम भाई देश हमारे । गनत न हमहिं भये बळवारे ॥ तिनको दंड दीजिये नाथा । तौ हम वैसें राज्य सुख साथा ॥ ब्रह्मदेव यह सुनि तेहिं वानी । कह नर पटैलेहिं हम जानी ॥ पुनि नृप ब्रह्मदेव रिस छायो । पाती यक ऐसी लिखवायो । ग्यारहसै नेजा सँग लीन्हे । आवत तुब दरशन मन दीन्हे ॥ हैं बघेल हम विदित जहाना । तुम शिरनेत अनुज बलवाना ॥ यह हवाळ लिखि पत्री काहीं ।दै पठ्यो यक मनुज तहाँहीं ॥ । सो पाती दिये तिन कर जाई । बचत गयो कोपमें छाई ॥ दोहा-तुरत जवाब लिखायकै, दीन्ह्यो तेहिं कर धार ॥ आप दरश पावे जो हम, धनि धनि भाग्य हमार ॥४१॥ सुन्यों न हम बघेलको नामा । निराखि होहिं अब पूरण कामा । पाती असि लिखाय शिरनेता । बांध्यो युद्ध करनको नेता ॥ फौज जोरि आगे कछु जाई । ठाढ़े भये रोष अति छाई ॥ इतते ब्रह्मदेवकी सैना । काल समान गई कछु मैना ॥ भगी फौज शिरनेतन केरी । नृप शिरनेत बन्धु तह घेरी ॥ पकरि भूष शिरनेतहिं काहीं । सौंप्यो सो अतिहीं सुख माहीं ॥ ब्रह्मदेवको निज सब देशू । सौंपिदियो शिरनेत नरेशू ॥ तहँ नृप ब्रह्मदेव सहुलासा | करत भये कछु वासर वासा ॥ दोहा-ब्रह्मदेवके होतभयो, तनय सिंह जेहिं नाम । सिंहदेवके पुनि भये, वेणीसिंह ललाम ॥ ४२ ॥ भूपति वेणीसिंहके, नरहरिसिंह सुजान ॥ नरहरि हरिके होतभे, भेददेव मतिवान ॥ १३ ॥ शिरनतनके सहित उछाहा । भेददेवको कियो विवाहा ॥ मैददेवको परम प्रतापा । बाढ़या रिपुन देत अतिं पा ॥ भैददेव पुनि पितु दिग जाई । सादरं विनती कियो सुहाई ॥