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बघेलवंशवर्णन । (६६३) करि दंडवत प्रणाम विनय किंय नाथ दया उर धारी। कछ दिन आप वास इत कीजै तो मैं होहुँ सुखारी॥ कुटी दियो बनवाय भूप तहँ करतभयो मैं वासां ॥ कछ वासरमें गर्भवतीभै रानी सहित हुलासा ॥ ८ ॥ दोहा-ज्यों ज्यों रानीकै उदर, बढ्यो गर्भ करि वास ॥ त्यों त्यों रानीके वपुष, बायो परम प्रकाश ॥१६॥ कछु दिन बीते सुदिन जब आयो । तब रानी दुइ सुत उपजायो । भयो जो जेठ पुत्र तेहि आनन । होत भयो सम मुख पंचानन ॥ लहुरो तनय होत जो भयऊ । तेहि नर तनु अति सुंदर ठयऊ ॥ लखि रानी अति अचरज मानी । दिय देखाय भूपति कहें आनी ॥ मानिशंक भूपालउदासा । कह कबीर आयो मम पासा ॥ सादर करि दंडवत प्रणामा । कीन्हीं विनय भूप मतिधामा । नाथ भये मेरै सुत दोई । है अति कृपा आपकी सोई ॥ पै जो भयो जेठ सुत स्वामी । व्याघ्र वदन सों यह बदनामी ॥ दोहा--सो सुनि मैं वाणी कही, करिकै बहुत प्रशंस ॥ यह सुत वंश वर्तसभो, रामलोकको इस ॥ १७ ॥ व्याघ्र वदन परतो दृग जोई । नाम वघेल ख्याति जग होई ॥ याते वंश बयालिस ताई । अटल राज्य रहि हैं महि ठाई ॥ तेजवान यह होय महाना । पूरण भक्तिमान भगवाना ॥ वंश बयालिसलों अभिरामा । चलिहै तुब बघेल कुल नामा ॥ यह वर हि सों मेरे मुखते । भूपति आय महल अति सुखते ॥ द्विजन दान है तोपन काहीं । दगवायो वहु बार तहाँहीं ॥ पुनि मोकहँ सो नृपति सुजाना । कार बहु विनय काय निजथाना ।। ऊंचे आसन पर बैठाई । पूजन किय अति आनँद छाई ॥ दोहा-रानीलै दोउ पुत्रको, मेरे पग दिय डारि ॥ तब मैं पुनि देतो भयों, बहु अशीसचित धारि १८