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साखी। (६६५) यही मनते डरउपजा कहे यहीके अनुभवते ब्रह्मभयो सो भूत ब्रह्मको सबै डेरायहैं सो यही ब्रह्मके डरमें जीव पराहै कहे हराहै सो यह ब्रह्मके डरते चैन न याको परा अर्थात् यह ब्रह्मको ढूंढ़तही रहिगये न पाये न ब्रह्म भयो न चैन भयो यह कहै हैं कि राम को कोई देखा है हमतो नहीं देखा जो कोई हमको देखाइ देइ तौ हम मानैं सो रे मूढ़ तुमतो डरमें परेही तुमको कैसे देखाइदेईं जाको साहब कृपाकरै हैं ताको देखाइ देइहौं ॥ ३६४ ॥ सुखको सागर में रचा, दुखदुख मेलो पांव ॥ स्थिति ना पकरै आपनी, चले रङ्क औ राव ॥३६५॥ श्रीकबीरजी कहै हैं कि मैंतो या बीजक ग्रन्थमें सुखको सागर रच्यो है कंहे साहबको बताइ दियो है तामें नहीं लगै दुःखमें पँउ भेलै है अर्थात् कहूं ब्रह्ममें कहूं ईश्वरनमें कहूं नानामत में लागै है जहां याकी स्थिति है साहबमें तिनको नहीं पकरै याही ते राजा रंक सब चले जायेहैं काळखाये लेइहै॥३६५ दुख न हता संसारमें, हता न शोक वियोग ॥ , सुखहीमें दुखलादिया, बोलै बोली लोग ॥ ३६६॥ | या संसार जो है सो चित अचितरूप साहबको है सो जो कोई साहबरूप कारि संसारको देखै है ताकी न दुःख न शोकहै न वियोगहै साहबतो सर्वत्रपूर्ण है ऐसो सुखरूप जो है संसार तामें मोर तोरमें परिकै दुखलादिया कहे दुःखभोगन लग्यो औ वहीं मोर तोरकी बोली लोग बोलै हैं साहबको नहीं जाने हैं॥३६६॥ लिखापढ़ीमें परे सब, यहगुण तजै न कोई ॥ सबै परे भ्रमजालमें, डारा यह जिय खोइ॥ ३६७॥ सब लिखापढ़ीमें परे हैं वेदशास्त्र तात्पर्य करिकै साहब को बतावै हैं सो । तो न जान्यो वादविवाद पढ़िपढ़ि करनलगे नये नये ग्रन्थ बनाय लेनलगे लिखनलगे वेदशास्त्रको अर्थ फेरि डारनलगे साहब मुख अर्थ जौन तात्पर्य करिकै वेदशास्त्र बतावै हैं ताको छोड़ि अर्थ बदलै हैं या गुणको कोई नहीं छोड़े। याही ते सच भ्रमजालमें परे आपने जियको खोइ डारयो ॥ ३६७ ॥