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साखी। ( ६५३ ) सब लोग या कह हैं तुम्हारी गति तुम्हीं जानो हममें सामथ्र्य नहीं है जौन हमको गुरु बताय दियो है ताही में लगे हैं :तिनका कबीरजी कहै हैं कि इन सबकी भूल ईश्वर तो बताबै न आवेंगे औ जीवका तो आपने साहबको जानबै चाही नाहक संशयमें परे हैं साहबको जानैं तौ साहब छुड़ाई लेईंगे ॥ ३५६ ।। खालीदेखिकै भरमभा, ढूंढतफिरै चहुँ देश ॥ | ढूंढ़त ढूंढतमरगया, मिला न निगुणभेश ॥ ३५७।। जौने संशयमें सब बूड़िगये हैं सो संशय कबीरजी देखावै हैं खाली कहें शून्य देखिकै सब जीवन को भरम भयो सो देवता परोक्षहै वाको अर्थ जाने नहीं हैं औ चारों देशमें ढूंढत फिरै हैं औ केते वा निर्गुण धोखोब्रह्म को ढूंढ़त दृढ़त मरि गये खोज न लाग्यो । ३५७ ॥ बूझ अपनी थिररहै, योगी अमर सो होइ ॥ अव बूझै भरमै तजै, आपै और न कोई ॥ ३५८ ॥ देखादेखी सबजग भरमा, मिला न सतगुरु कोइ ॥ कहै कबीर करत नितसंशय, जियरा डाराधोइ॥३५९॥ गुरुवा लोग कहै हैं कि जो बूझ थिर रहै तौ योगी अमर है जाय जो जगतके नाना भ्रमछोड़िकै अबहू बूझै तौ एक आपही है दूसरानहीं है मारैगा कौन ऐसे कहि कहि देखादेखी श्रीकबीरजी कहै हैं कि सबजगत् भरमि गया सतगुरुकहे साहबके जाननवारे इनको कोई न मिलो हमहीं ब्रह्म यही संशय में डारिकै आपने जीवन को खोइ डारे अर्थात् नरकमें डारिदीन्हे ॥ ३५८॥ ३५९ ॥ ह्वांकी आश लगाइया, झूठी ह्वाँकी आश ॥ गृहतजि वनखंड मानिया,युगयुग फिरै निराश॥३६०॥ वा ब्रह्म जो धोखा ताकीआश लगाये है सो आश तेरी झूठी है गृहत्यागिकै जाके हेत तुम बनखण्ड में टिकेहु सो युग युग निराश फिरैगो अर्थात् ठिकान न लगैगो वह मिथ्या है बिना साहबके जाने संसारते न छूटैगो ।। ३६०॥ नेइके विचले सबघर बिचला, अब कछु नाहिं बसाई॥ ककबीरजाअवकीसमुझे, ताकोकालनखाई ॥३६॥