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साखी । (६६१) धोखाही ते सम्पूर्ण जगत् व्यतीत होगया और धोखाही ते सिराय गया औ यह मन अपनी स्थिति नहीं पकैरै है स्थिर नहीं होय है सो आपनी भूल कासों कहै यादुःख काहूसों नहीं कह्यो । ३४८ ॥ मायाते मन ऊपजै, मनते दश अवतार ॥ ब्रह्मविष्णु धोखेगये, भरमपरा संसार ॥ ३४९ ॥ साहब औ साहबके पास पहुँचेहैं जे तिनको छोड़े और सब मनके फन्दमें, परे हैं और अर्थ स्पष्टही है ॥ ३४९ ॥ रामकहतजगबीते सिगरे, कोई भये न राम ॥ कहकवीर जिनरामाहिं जाना, तिनके भे सबकाम३५० | हमहीं रामहैं हमही रामहैं या कहत कहत सब सब जग बीतिगये कहे मरिगये परन्तु कोई राम न भये औ कबीरजी कहै कि जिनं श्रीरामचन्द्रको मालिक जान्यो है तिनके सब काम द्वैगये हैं ॥ ३५० ॥ यहदुनिया भै बावरी, अदृश्यसों बाँध्यो नेह ॥ दृश्यमानको छोड़िकै, सवै पुरुष विदेह ॥३५१॥ यह दुनिया बावरी है गई अदृश्य जो निराकार ब्रह्म तास नेहबाँध्यो है सो वातो धोखाहै काको मिलै जीव ब्रह्म होतही नहीं है सो दृश्यमान जे साहब श्रीरामचन्द्र हैं तिनके छोड़िकै वा बिदेह पुरुष निराकार ब्रह्मको सेवै है अर्थात् वाहीमें लागैहै ॥ ३५१ ॥ राजा रैयत खैरहा, रैयत लीन्हीं राज ॥ | रेयतचाई सबलिया, तात भया अकाज ॥३२॥ राजा जो साहब है सो रैयत है रहा है अर्थात् वाको कोई जानता नहीं है औ रैयत जो धोखाब्रह्म सो सब लेत भयो अर्थात् सब जगत् वाही में लगत भयो सो रैयत जो है अहम्ब्रह्मास्मि सो साहबको सब लियो चाहै है अर्थात . आपै बह्म होन चाहै है ताते अकान भयो माया के बश है आपनेनको मालिक मानन लग्यो ॥ ३५२ ॥