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( ६४८) बीजक कबीरदास । | लीन्ह्या फेटकि पछारि यह साखी भर सब पोथिनको पाठ मिलि आवा है। लोहे चुंबक प्रीति जस यह साखीते चौरासीके वश यह साखी भी उन्तिस साखी एक पोथीके क्रमते है आवा अब एक पोथीमें अट्ठाइस साखी औरई और हैं तिनहुँनको अर्थ लिखे हैं । बूझौ शब्द कहते आया, कहां शब्द ठहराय॥ कह कबीर हम शब्द सनेही, दीन्हा अलख लखाय ३४१ यह शब्द जो रामनाम है सो बूझौ कहे बिचारी कहते आयाहै औ कहा ठहराय॑है सोहम वही शब्दके सनेही हैं वाशब्द तुम नहीं बुझते हो कैसो है। शब्द कि साहब के इहां ते आयो है ॥ रामनामलै उचरीबाणी ॥ यह रमैनीमें लिख आये हैं सो जब कुछ नहीं रह्यो तब रामनामहीते सबकी उत्पत्ति भई है। सो राम नाम मंत्रार्थ जो में बनाया है तामें बिस्तारते लिख दिया है। इहां सक्षपते जनाये देउँहीं‘अ इ उ ए ऋ ल क ए ओ ऐ औच हयवर लण् अ मणनम् झैभन्न घडधषु जबगडदश् खफछउथ चटतब कपय् शषसर् हये ॥सबबर्ण चौदह सूत्रमें पाणिनि लिखिदियो। आदिरन्त्येन सेहता । अन्त्येने ता सहित आदि मध्यगानां स्वस्यच संज्ञास्यात् यहि सूत्र करिकै अकार आदिकालीन औलकार अंतकालीन तब अलू प्रत्याहारकीन तेहिते बीच के वरण सब आयगये।सो अलू प्रत्याहार रामनामको एकदेश ते निकसै है स रामनामके रकारको बर्ण विपर्यय किया तब अकारको यह कैतिल औ रकारको वह कैतिले गये तब अर भयो सो रकार लकारको अभेदहै तेहिते अलभयो तेहिते राम नामके एक देश ते सब निकसि आये तेहिते सबको आदि राम नाम है । सो राम नामको अर्थ साहिबैके ठहरायेहै, अर्थात् राम नाम साहबही को बतावै है । सो श्री कबीरजी कहै हैं कि, हम वही शब्दके सनेही हैं। कैसे है शब्द कि, अलखैहै वा सबको लखावै हैं वाको कोई नहीं लख है जैसे आंखीते सबक देखै औ आंखी आपनी कोई नहीं देखे है । जो कहो कबार कैसे कहे हैं कि हम अलखको लखायदियो ती सुनो जैसे ऐना लैंकै देखै तो आपनी आंखीको प्रतिबिंब दोख पैरै है सो यह बीजकरूप ऐनाहै तामें अनिर्वचनीय जो राम नाम ताको