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(६४४) बीजक कबीरदास । कैंचन भो पारस परसि, बहुरि न लोहा होई॥ चंदन बास पलास विधि, ढाक कहै नहिं कोई॥३३४॥ | पारसको परसिकै कंचनभयो जो लोह है सो फिर लोहा नहीं होईहै औ चंदनके बासते पलाश जो छिउल है सो बेधिगयो ताको ढाख कोई नहीं कहै है। चंदनै कहै है ऐसे जोजीव साहबको द्वैगयो साहब के पासगयो ताकी जीव नहीं कहै है पार्षद रूप कहन लगै है ॥ ३३४ ॥ | बेचूनै जग राचिया, साईं नूर निनार ।। तब आखिरके बखतमें, किसको करौ दिदार ॥३३६॥ बेचून निराकार जौन जगत्को रचिसि है सो सांई के नूरते कहे प्रकाशते निनारैहै जुदा है अर्थात् साहबको प्रकाश न होई वा नूरही अल्लाह है ऐसा जो मानो तो हे मुसल्मानौ मैं पूछता हौं कि आखिरके वखतमें कहे क्यामतिके बखतमें वह इनसाफ करैगा ऐसा कुरानमें लिखता है सो उसको बेचून मानते हौ निराकार मानते हौ तौ भला वा किसतरहसे इनसाफ करैगा औ किसका ददार करौगे अर्थात् किसकी सूरति देखौगे भावयाहै कि वा निराकार नहीं है साकार है तुमको भ्रम भया है सो या बात सत्ताईस रमैनीके मूलमें ह साहबको नूरज है प्रकाश सो सबके भीतर बाहर भराहै कोई जगह उससे खाली नहीं है औ साहब औ साहबकी सामग्री औ साहब को लोक सब नूरहीनृर काहै वहां बहुतसा नूर समिटिकै एकसल देखि परै है जिसतरहकी मिसाल कि जैसा साहबहै तैसासाहेबै है दृष्टांतकाकोदेइ सो कबीरजी पूछे हैं कि भला तुमहूँ तो विचारदेखो कि जो उसके हाथै पांउ न होते तो जगत्को कैसे रचतो सो सहबसाकार है तुमको निराकारकी भ्रमभई है तामें प्रमाण ।। कलिमा बाँग निमाज़ गुज़ारै । भरम भई अल्लाह पुकारै ।।. अजब भरम यक भई तमासा । ला मकान बेचून निवासा ।। बे निमून वै सबके पारा । आखिर काको करौ दिदारा । रगैरै महजिद नाक अचेता ! भरमाने बुत पूजाहोता । बावनतीसबरण निरमाना । हिन्दूतुरुक दोऊ परमाना ॥