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(६४२) बीजक कबीरदास । सो ऐसे संसाररूपी बिटपकी बलिहारी है जामें जरकाटे फलहोइ है अर्थात् जौने । जीवको संसार निर्मूल द्वैगयो तौने जीवको साहब रूपी फल मिलै है ॥३२७॥ सरहर पेड़ अगाध फल, अरु बैठा है पूर ॥ बहुत लाल पचि पाच मरे, फल मीठा पै दूर ॥३२८॥ या शरीर रूपी सरहर वृक्ष बड़ा ऊँचाहै सरलहूहै सबको मिलै है और शरीर वृक्षको फल कहा है साहबको जानै सरअगाध है औ सर्वत्र पूर्ण है। अन्तर्यामी रूपते सबके हियेमें बैठहै सो ऐसो साहबको ज्ञानरूपी फल मीठाहै। परन्तु दूर है बहुत लाल कहे बहुत जे जीव हैं ते पचिपचि मरे पै पाये नहीं अथवा साहबको ज्ञानरूपी फल सरहरहै कहे चीकनहै चढ़ने माफिक नहीं है। खसिलि परै है तामे प्रमाण कबीरजी को ।। | बहुतकलोगचढ़े बिनभेदा देखाशिख गहिपानी । खसिळी पाउँ ऊध्र्वमुख झूले परेनरककीखानी ॥ औशरीरकोफल साहबको भजनहै तामें प्रमाण गोसांईजीको । . देहधरेको या फलभाई, भनोराम सबकाम बिहाई ॥ ३२८ ॥ बैठ रहै सो बानियाँ, खड़ा रहे सो ग्वाल ॥ जागत रहे सो पाहरू, तिनहुंन खायो काल॥३२९॥ बनियां बैठ रहे हैं दुकान लगाय ते गुरुवालोग जे जौने देवताको मन्त्र मांगै हैं ताको तौनहीं मन्त्र देइहैं औ ग्वालखड़े गौवनको चरावै हैं तेवे हैं जे आत्मैको मालिक मानै हैं इन्द्रिनको चरावें हैं जौने विषय चाहै हैं तौने भानैं हैं दूसरो लोक नहीं मानै हैं शरीरहीको मनै हैं औ जे जागत है हैं ते पाहरू हैं आपनी बस्तु ताकै हैं ते योगी हैं आफ्नी इन्द्रीको ताके रहै हैं समाधि लगाये सदा जागतरहेहैं सोये तीनों साहबको न जान्यो ताते तिनहुँनको काल धुरिखायो॥३२९॥ युवा जरा बालापन बीत्यो, चौथि अवस्थाआई॥ जस मूसवाको तकबिलैया,तसयम घातलगाई॥३३०॥ तीनिउँ अवस्था बीत गैई चौथि अवस्था आय गई जैसे मूसको बिलारी ताके है ताको घात लगायेहै तैसे यम तोको घातलगाये हैं सो अजहूं साहबको चतु३३०