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(६३६) बीजक कबीरदास । पूरासाहव सैइये, सवविधि पूरा होइ ।। ओछे नेह लगाइये, मूलौआवै खोइ ॥ ३०६॥ पूरा साहब जे सर्वत्र पूर्ण हैं तिनको जो सेइये तो सबबिध पूराहोइ औ ओछे जेहैं नानामत धोखा तैने में जो लगाइये तो नफाकी कौनचालै मूलौकी हानिद्वैनाय है ॥ ३०५ ॥ | जाहुबैद्य घरआपने, बात न पूछे कोई ॥ जिन यहभार लदाइया, निरबाई वा सोइ ॥ ३०६॥ , कबीरजी कहैं हैं कि हे बैद्य ! गुरुवालगौ तुम आपने घरको जाहु तुमको बात कोई नहीं पूछे है जिन यह संसाररूपी भारलदाया है कहे संसार उत्पत्ति ‘कियाहै तैनै निर्बाहेगा अर्थात् न निर्वाहेगा येतो सबमायिक अधिक बाँधनेवारे हैं छुड़ावनेवारे नहीं हैं ॥ ३०६ ॥ औरनके समुझावते मुखमें परिगो रेत ॥ राशि विरानी राखते, खाये घरको खेत ॥ ३०७॥ औरेनको उपदेश करत करत तुम्हारे मुखमें रेतकहे धूरिपरिगई अर्थात कुछ न तुमसों बनिपरयो बिरानी राशि तो तुम राखतही कहे औरे औरेको उपदेश कारकै समुझावतेहै। अपने घरको खेतं जो स्वरूप ताको नहीं ताकतेही काल खाये लेइहै सो तुम्हारो स्वरूपखेततौ ताक नहीं रहै औरकी राशिकहे आत्मा तुमकैसे ताकौगे ॥ ३०७ ॥ मैं चितवतह तोहिको, तुम कह चितवै और ॥ नालत ऐसे चित्तको, चित्त एक दुइ ठौर ॥ ३०८॥ गुरुमुख । साहब जीवसौं कहै हैं कि मैंतो तेरी ओर चितवै हौं सदा सन्मुख बनेरहौ हौं औ तू कहा और और में चित्त लगावै है सो ऐसे तेरे चित्तको नालति है। कि एक आपने चित्तको माया में औ ब्रह्ममें दुइऔर लगाये है ॥ ३०८ ॥